रूस और ओपेक मार्च तक बढ़ा सकते हैं प्रोडक्शन कट
रूस और ओपेक क्रूड ऑयल प्रोडक्शन को मार्च 2021 तक बढ़ाने का विचार कर रहे हैं। मौजूदा समय में यह कट दिसंबर2020 तक तय है। इसे तीन महीने और बढ़ाने पर बातचीत चल रही है। जिसकी वजह से क्रूड ऑयल की कीमत में तेजी देखने को मिल रही है। बीते दो दिनों में क्रूड ऑयल के दाम में 4 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो चुका है। अगर बात आज की करें तों मौजूदा समय में अमरीकी क्रूड ऑयल डब्ल्यूटीआई 2.42 फीसदी की तेजी के साथ 38.57 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है।जबकि ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 2.34 फीसदी की तेजी के साथ 40.64 प्रति ओंस पर कारोबार कर रहे हैं।
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दिसंबर-जनवरी इतनी हो सकती है कीमतें
केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया के अनुसार अगर ओपेक और रूस प्रोडक्शन कट की सीमा को बढ़ाते हैं तो दिसंबर और जनवरी के आसपास डब्ल्यूटीआई क्रूड की कीमत 42 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच सकती है। वहीं ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 45 से 48 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच सकती है। कीमत ज्यादा बढऩे के कई कारण देखने को मिल रहे हैं। सबसे बड़ा कारण यूएस और यूरोपीय देशों को कोरोना वायरस का दूसरा वेव आना है। जिस कारण से दूसरा लॉकडाउन लगने शुरू हो गए हैं।
दूसरा लॉकडाउन डालेगा काफी फर्क
क्रूड ऑयल के जानकारों की मानें तो दूसरा लॉकडाउन काफी फर्क डाल सकता है। फ्रांस में लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है। इस लिस्ट में इटली, ऑस्टेया और जर्मनी का ना भी जुड़ चुका है। वहीं यूके 5 नवंबर से लॉकडाउन लगने वाला है। ऐसे में क्रूड ऑयल की डिमांड कम होने से काफी फर्क पड़ जाएगा। भले ही अमरीका, चीन जैसे देशों में इंडस्ट्री और प्रोडक्शन के आंकड़े बेहतर रहे हैं, लेकिन कोरोना वायरस का दूसरा वेव काफी अहम है।
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अगले अमरीकी राष्ट्रपति की भूमिका
वहीं क्रूड ऑयल की कीमत में अमरीका के अगले राष्ट्रपति की भूमिका काफी अहम रहने वाली है। अगर डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनकर आते हैं तो अमरीका अपना प्रोडक्शन बढ़ा सकता है। जिस कारण से कीमतों का स्तर निचला रहने के आसार हैं। इसकी एक वजह और भी है। वो यह है कि 2016 के बाद से अमरीका क्रूड ऑयल का एक्सपोर्टर बनकर उभरा है। अपनी इंवेट्रीज को बढ़ाया और इंपोर्ट को कम किया। जिसकी वजह से ऑयल की कीमत में काफी असर देखने को मिला। वहीं बाइडेन की क्रूड ऑयल की पॉलिसी क्लीयर नहीं है। एक बात तो तय है कि ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जा सकता है। वहीं पर्यावरण को लेकर काफी गंभीर है। ऐसे में वो उस पर्यावरण पैक्ट में भी हस्ताक्षर करेंगे जिसमें दुनिया के कई देश शामिल हैं।