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लखनऊ

कमलेश तिवारी को मारने से पहले हत्यारों ने दरगाह में किया था यह काम, सुनकर सुरक्षा एजेंसियों के उड़े होश

-इस चीज का बनाना चाहते थे वीडियो
-दोनों आरोपियों से करीब छह घंटे चली पुलिस पूछताछ में हत्यारों ने अपने जुर्म पर बेबाकी से बयान दिया
 

लखनऊOct 25, 2019 / 11:49 am

Ruchi Sharma

Kamlesh Tiwari Murder

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लखनऊ. हिन्दू समाज पार्टी (Hindu Samaj Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी हत्याकांड में हर रोज नए नए खुलासे हो रहे है। वहीं गुरुवार देर शाम फिर एक गिरफ्तारी हुई है। अब पुलिस ने बरेली (Bareilly) की दरगाह आला हजरत (Dargah Aala Hazarat) के मौलाना सैय्यद कैफ़ी (Syed Ali) को लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। मौलाना कैफ़ी पर कमलेश तिवारी की हत्या में शामिल दोनों आरोपी शेख अशफाक हुसैन और पठान मोईनुद्दीन अहमद को शरण देने का आरोप है। दोनों आरोपियों से करीब छह घंटे चली पुलिस पूछताछ में हत्यारों ने अपने जुर्म पर बेबाकी से बयान दिया है। बताया कि, 18 अक्टूबर की सुबह करीब साढ़े दस बजे जब हत्या के लिए खुर्शेदबाग के लिए निकले तो रास्ते में दरगाह में नमाज पढ़ी थी।
पता पूछते हुए कमलेश के दफ्तर पहुंचे और यहां महज डेढ़ मिनट के भीतर हत्याकांड को अंजाम दिया था। हत्यारे कमलेश का सिर धड़ से अलग करना चाहते थे, इसलिए गला रेता था। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो बनाकर दहशत फैलाना चाहते थे कि अब कोई विवादित टिप्पणी न करे। लेकिन पकड़े जाने के डर से उन्हें भागना पड़ा।
आरोपी नहीं छिपाना चाहते थे नाम

हत्यारोपियों ने बताया कि, कमलेश के दफ्तर में उनका गार्ड सो रहा था। नीचे कोई नहीं था। कमलेश ने अपने कर्मचारी सौराष्ट्र को बता रखा था कि, कुछ मेहमान आने वाले हैं। इसलिए सौराष्ट्र ने उन्हें नहीं रोका। आरोपियों ने इस बात को नकारा है कि, वे पिस्टल व चाकू मिठाई के डिब्बे में लेकर आए थे। बताया कि, अशफाक के पास पिस्टल थी, जबकि दोनों चाकू पैंट में रख रखा था। आधा किलो वाले मिठाई के डिब्बे में सिर्फ रसीद थी। चाहते थे जांच में उनका नाम सामने आए।
सिखाना चाहते थे सबक

अशफाक ने पूछताछ में बताया कि, वे सबको यह संदेश देना चाहते थे जो धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाले बयान देगा, उसका यही अंजाम होगा। इसीलिए दोनों हर जगह असली आईडी लगा रहे थे और सबूत छोड़ते हुए जा रहे थे। लखनऊ में ही सरेंडर की योजना थी। लेकिन कमलेश पर हमला करते समय अशफाक ने जो गोली चलाई, वह मोइनुद्दीन के हाथ में लगी थी।

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