यह है मामला- परिवादी ने 13 अगस्त 2013 को महावीर नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें बताया कि वह और उसकी नाबालिग बहन 6 अगस्त 2013 को एक अस्पताल परिसर में निर्माणाधीन साइट पर काम करने गए थे। वहां से पीडि़ता को अस्पताल परिसर में टापरी बनाकर रह रहा कचरू भगा ले गया। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अपहरण व बलात्कार सहित लैंगिग अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम में मामला दर्ज कर आरोप पत्र न्यायालय में पेश किया।
अभियोजन पक्ष के तर्क- विशिष्ट लोक अभियोजक धीरेंद्र सिंह चौधरी ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि घटना वाले दिन 6 अगस्त 2013 को पीडि़ता की आयु 15 से 17 वर्ष होना साबित है। गवाहों, थाने के एएसआई व अनुसंधान अधिकारी के साक्ष्य से साबित होता है कि पीडि़ता को आरोपी कचरू ले गया और उसके साथ बलात्कार किया।
बचाव पक्ष की दलील- आरोपी के अधिवक्ता धर्मेन्द्र श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि पीडि़ता घटना वाले दिन 19 वर्ष की होना साबित है। अपहरण का कोई साक्ष्य नहीं है। नक्शा मौका पुलिस द्वारा नहीं बनाया गया। पीडि़ता एवं आरोपी की मेडिकल संबंध में रिपोर्ट पुलिस ने बिना किसी निष्कर्ष के प्राप्त की। इस कारण बलात्कार साबित नहीं होता।
जमानती वारंट से बुलाया तो भी नहीं आए- न्यायाधीश ने निर्णय में उल्लेख किया कि अनुसंधान अधिकारी तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गवाह पेशी के लिए 17 जनवरी 2020 को तथा 13 जनवरी 2020 को जमानती वारंट तामील होने पर भी न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए। जिसके कारण गवाह कोर्ट में नहीं आ सके। आरोपी के खिलाफ अपराध प्रमाणित नहीं पाया गया तथा वह दोष मुक्त पाया जाता है।
इन पर कार्रवाई- न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को लिखा कि तत्कालीन अनुसंधान अधिकारियों एएसआई सच्चिदानन्द, उप निरीक्षक फूलसिंह, वृत्त चतुर्थ कोटा आरपीएस बनवारी लाल, वृत्ताधिकारी वृत चतुर्थ अताउर्रहमान, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रवीण जैन, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कोटा शहर के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जाए।