आई माता का मंदिर बिलाड़ा के बीचो-बीच बडेर में स्थित है। यहां देश भर से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते है। जनश्रृति के अनुसार छह सौ वर्ष पूर्व आई माता ने गुजरात में मुगल बादशाह का मान मर्दन किया था। उसके बाद यहां आकर बडेर की स्थापना की। वह ईश्वर भक्ति में लीन हो गई। गांव के लोग तभी से उनके अनुयायी हो गए।
इसी दौरान एक दिन उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि कुछ दिन के लिए एकांत चाहती हूं। मुझे अकेला छोड़ दे और वे वहां गुफानुमा कक्ष को बंद कर उसमें बैठ गई। 5-6 दिन तो ठीक चला, लेकिन जिज्ञासावश अनुयायियों ने एक दिन कक्ष का दरवाजा खोल दिया तो चौंक गए। जिस गद्दी पर आई माता बैठी तो वहां वे स्वयं न होकर उनके वस्त्र, मोजरी और छड़ी ही मिली। लोग कुछ समझ पाते कि इतने में कहीं से आवाज आई मेरे हाथों से जो ज्योत प्रज्वलित की गई है ,उसके ऊपर के पात्र पर काजल की जगह केसर आएगा और जब तक यहां पर इस पात्र पर केसर गिरता रहेगा तब तक यह समझना कि मैं यहां इसी मंदिर में हूं। तब से लेकर आज तक 600 साल हो गए।
अखंड रूप से जल रही इस ज्योत की लौ से केसर आ रही है। मंदिर में दीवान साहब द्वारा स्थापित स्वर्ण जडि़त सिंहासन पर आई माता की प्रतिमा विराजित है। पास ही वह गद्दी भी स्थापित की हुई है जिस पर आई माता अंतिम क्षणों में बैठी थी। वैसे तो साल भर श्रद्धालु यहां आते रहते है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है।