पंचांग के अनुसार, इस साल सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो गया है जो 31 अगस्त तक चलेगा। इस साल सावन का महीना 59 दिनों का होगा। अधिक मास पड़ने के कारण 19 साल बाद ऐसा योग बन रहा है जब 8 सावन सोमवार की पूजा किए जाएंगी, इसलिए नाग पंचमी का त्योहार 7 जुलाई और 21 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा। इस दिन देशभर में यज्ञ अनुष्ठान और रुद्राभिषेक जैसे धार्मिक कार्य विशेष रूप से किये जाते हैं।
नाग पंचमी का एक नाम और
नाग पंचमी को मौना पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार इस समय भक्त मौन रहकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। इसके साथ ही यह समय सांपों की पूजा करने का भी होता है और नाग देवताओं को समर्पित मंदिरों और शिवालयों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
नाग पंचमी कल, इस विधि-विधान से करें नाग देवता की पूजा
नाग पंचमी का समय
पंचांग के अनुसार सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 7 जुलाई को सुबह 3:12 बजे शुरू होगी और 8 जुलाई को सुबह 12:17 बजे समाप्त होगी।
नाग पंचमी का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार सांप को देवता के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि भगवान शिव के गले का हार वासुकि और विष्णु की शैय्या शेषनाग को माना गया है। सावन के महीने में भारी बारिश के कारण सांप जमीन से बाहर निकल जाते है। इस दिन कालसर्प दोष की विशेष पूजा की जाती है, साथ ही कुछ लोग सांप को सपेरे से छुड़ाकर जंगल में छोड़ देते हैं।
पौराणिक काल से ही नागों को देव के रूप में पूजा की जाती है इसलिए नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करना शुभ माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा करने से सर्पदंश का भय नहीं रहता और अच्छा जीवन व्यतीत होता है। इस दिन सांपों को दूध पिलाने और चढ़ाने से अक्षय पुण्य मिलता है।
यह त्यौहार सपेरों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। कुछ जगहों पर इस दिन घर के प्रवेश द्वार पर सांप का चित्र बनाने का रिवाज भी है। लोगों का मानना है कि यह तस्वीर सांपों की कृपा से घर की रक्षा करती है।
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नाग पंचमी की पूजा
पं. राजकुमार चतुर्वेदी के अनुसार इस दिन पर नाग देव की विशेष पूजा की जाती है। चांदी, तांबे के नाग-नागिन के जोड़े की शिव मंदिरों में रखकर पूजा की जाती है। वही कुछ अन्य जगहों पर नाग देवता को दूध पिलाकर पूजा की जाती है। जयपुर सहित राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पूजन में सांप की चांदी या तांबे की प्रतिमा की जगह प्रतीक स्वरूप रस्सी का उपयोग भी किया जाता है। नाग पंचमी पर ठंडा भोजन ग्रहण करने की परंपरा है। राजस्थान में नाग पंचमी को भाई पंचमी भी कहते है।
इस दिन घर में पूजन के अलावा, नाग देवता के निमित्त सपेरे को दूध, मिठाई के साथ अन्य सामग्री भी दी जाती है। कहीं-कहीं बांबी का पूजन कर उसकी मिट्टी को घर लाया जाता है। इस मिट्टी में कच्चा दूध मिलाकर इससे चूल्हे पर नाग देवता की आकृति बनाई जाती है। इसके पूजन के बाद भीगा हुआ बाजरा या मोठ खाने का भी रिवाज है। इन परंपराओं का आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन किया जाता है।