उज्जैन और मध्य प्रदेश में इसकी अलग ही धूम रहती है। इसके कारण सड़कों पर निकले हुरियारों को रंगों से सराबोर करने के लिए निगम की गाड़ियों से रंग फेंका जाता है। वहीं मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई जाती हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता भी मनुष्यों के साथ होली खेलते हैं।
पंचांग के अनुसार चैत्र कृष्ण पंचमी तिथि की शुरुआत 29 मार्च रात 8.20 बजे से होगी और यह तिथि 30 मार्च रात 9.13 बजे संपन्न हो जाएगी। उदयातिथि में पंचमी 30 मार्च को मानी जाएगी। इसलिए इसी दिन रंग पंचमी मनाई जाएगी और इसी के साथ पांच दिवसीय रंगोत्सव संपन्न हो जाएगा।
रंग पंचमी मनाने की परंपरा के पीछे कई पौराणिक कहानियां बताई जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी देवता होली खेलते हैं। आइये इन्हें जानते हैं। ये भी पढ़ेंः Chaitra Navratri: इस नवरात्रि के पहले दिन भूलकर भी न करें ये काम, बन रहा है अशुभ योग
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब होलाष्टक के दौरान कामदेव को शिवजी ने भस्म कर दिया था तब देवताओं में निराशा का माहौल था। फिर शिवजी ने कामदेव को जीवित करने का आश्वासन दिया तो सभी ओर खुशियां छा गईं। इसके बाद चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी के दिन देवी देवताओं ने रंगोत्सव मनाया। इसके बाद से ही रंगपंचमी के दिन देवी देवताओं के होली खेलने की परंपरा शुरू होई। बाद में धरती पर मनुष्यों ने भी इस परंपरा को अपना लिया। मान्यता है इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्यों के साथ रंग खेलते हैं।
किंवदंती और तमाम ग्रंथों के अनुसार द्वापर युग में होली के पांचवें दिन चैत्र कृष्ण पंचमी को भगवान श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला के बाद इस दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया था।
रंगपंचमी की एक और मान्यता भी भगवान श्रीकृष्ण से ही जुड़ी हुई है। इसके अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया था। इसकी खुशी में पांच दिन तक नंदगांववासियों ने उत्सव मनाया और खूब रंग खेला। फिर ये परंपरा बन गई।
रंगपंचमी की एक अन्य मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद को राज्य मिलने की खुशी में जनता ने चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से पंचमी तक उत्सव मनाया था, तभी से रंगपंचमी पर होली खेलने की परंपरा है। इसके अलावा एक अन्य मान्यता के अनुसार पंचमी की तिथि नागदेव की तिथि है। इस दिन देवी-देवता भी पृथ्वी पर आ जाते हैं और मनुष्य के साथ गुलाल खेलते हैं।