पूर्वाभिमुख मन्दिर परिसर में दो प्रवेश द्वार उत्तर और पूर्व में हैं। पूर्व प्रवेश द्वार के सामने पश्चिमाभिमुख विशालकाय महादेव की प्रतिमा स्थापित की गई है। उनके दर्शन के पश्चात जब हम मन्दिर परिसर में प्रवेश करते हैं तो देखें कि प्रवेश द्वार की निर्माण शैली ऐसी है कि प्रवेश करते समय आपका सिर स्वयमेव झुक जाएगा। परिसर में प्रवेश करते समय देववृक्ष पीपल तले कृष्ण जी की मोहक मूर्ति व शिवलिंग के दर्शन करते हुए आप दूसरी बार झुकेंगे।
परिसर में प्रकृति पूजन के लिए बिल्व वृक्ष, पारिजात, अपराजिता के पौधे मिलेंगे। परिसर का मुख्य आकर्षण अक्षय वटवृक्ष है जिसकी शीतल छांव तले पूर्व दिशा में उमा महेश्वर की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते हैं। दक्षिण की ओर मुख किए अष्टभुजी दुर्गा के दर्शन होते हैं। इतिहासकार आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि यहीं एक प्राचीन शिलालेख है। पश्चिम दिशा में काल भैरव, शिवलिंग और नरसिंग देव के दर्शन होते हैं। उत्तर दिशा में रिच्छिन दाई की प्रतिमा है। इसकी मान्यता है कि बच्चा ज्यादा रोता है तो इन पर मुर्रा लाई चना चढ़ाने से वह रोना बंद कर देता है।
यह भी पढ़ें:
Durga puja 2023 : नवरात्रि के शुरुवात के साथ बतकम्मा के रूप महागौरी की पूजा अब आपका प्रवेश मुख्य मन्दिर में होने जा रहा है कुछ पल माता के प्रवेशद्वार की भव्यता और आकर्षण को निहारें फिर पीतल की बड़ी घंटी को बजाकर माता को सूचित करें की आप दर्शन के लिए लालायित हैं। यहां पर आपका सिर तीसरी बार झुकता है और सामने मोहक, ऊर्जायुक्त और आध्यात्मिकता से भरपूर दरबार सजा हुआ है। मां काली की अपार शक्ति उत्सर्जित करती हुई काले ग्रेनाईट की प्रतिमा विराजित है जिस पर से दृष्टि का हटना नामुमकिन है। माता चतुर्भुजी हैं और तीन स्वरूपों में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का अद्भुत रूप है। दाहिने हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में सहस्त्रदल कमल, नीचे हाथ में कमंडल और नीचे दाहिने हाथ में माला धारण किए हैं। माँ के सीने पर वृश्चिक अंकित हैं।
यह भी पढ़ें:
नवरात्र के लिए आकर्षक रोशनी से सजा दंतेश्वरी मंदिर और सिंह द्वार पूर्व दिशा से आने वाली विपदाओं की रक्षक मन्दिर में दो परिक्रमा पथ है पहला गर्भगृह के बाहर जिसमें परिक्रमा करते हुए आपको माता के नौ रूपों औश्र 30वर्षों से प्रज्ज्वलित अखंड ज्योति के दर्शन होंगे। दूसरी परिक्रमा पथ गर्भगृह में जहां उतरने पर आपका सिर चौथी बार स्वयं झुक जाएगा। इस तरह चार बार शीश अपने आप झुकता है। दो तलों वाले इस मन्दिर का ऊपरी तल साक्षात कैलाश है, जहां द्वादश ज्योतिर्लिंगो के साथ महाशिवलिंग और गणेश जी के दर्शन होंगे। परिसर के दक्षिणी भाग में दो मंजिला ज्योति कक्ष, पुष्प कुण्ड बना हुआ है। विगत 45वर्षों से दीवाली की मध्य रात्रि माँ काली की भव्य महाआरती की जाती है। दोनों नवरात्रि में मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है। कवर्धा नगर की पूर्व दिशा से आने वाली विपदाओं की रक्षक हैं।