सिंदूर का महत्व (Sindoor ka Mahatva)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिंदूर को विवाहित महिलाओं के सौभाग्य और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। मांग में सिंदूर भरना यह दर्शाता है कि महिला विवाहित है और अपने पति की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना करती है। मान्यता है कि यह परंपरा माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह से चली आ रही है। सिंदूर को देवी लक्ष्मी और दुर्गा से भी जोड़ा जाता है। इसे शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सिंदूर लगाने से महिलाओं के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन बना रहता है।
मांग में सिंदूर भरना केवल एक परंपरा ही नहीं, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक बातें भी जुड़ी हुई हैं। यह पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूती देता है। साथ ही महिला के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक संतुलन में भी सहायक है।
सुहाग का प्रतीक सिंदूर (Suhag Ka Prateek Sindoor)
धार्मिक मान्यता के अनुसार सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है। पत्नी अपनी मांग में सिंदूर इस लिए लगाती है कि उसके पति पर किसी तरह का कोई संकट न आए, दोनों दंपत्तियों में प्रेम बना रहे। इसके अलावा घर में सुख-शांति और खुशहाली बनी रहे। शास्त्रों के अनुसार जो महिलाएं मांग में लंबा सिंदूर लगाती हैं। उन्हें हमेशा अपने पति से मान-सम्मान और प्रेम मिलता है। कहा जाता है कि शादीशुदा महिलाओं को हमेशा नाक की सीध में सिंदूर लगाना चाहिए। टेढ़ा-मेढ़ा सिंदूर लगाने से पति का भाग्य खराब होने लगता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Vaigyanik Drishtikon)
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो सिंदूर में मुख्य रूप से पारा (मर्करी), हल्दी, और चूने का मिश्रण होता है। पारा मानसिक तनाव को कम करने और तंत्रिका तंत्र को शांत करने में सहायक होता है। सिंदूर मांग के जिस स्थान पर लगाया जाता है। वह स्थान महिला के मस्तिष्क के सामने वाले हिस्से से जुड़ा होता है, जो मानसिक शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।