मंगलसूत्र (Mangalsutra)
मंगलसूत्र भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण आभूषणों में से एक है। इसकी मान्यता और महत्व हर क्षेत्र में थोड़ी भले ही अलग हो, लेकिन इसकी पवित्रता, श्रद्धा और सम्मान सभी जगह समान है। इस धागे का शब्दिक अर्थ होता है-पवित्र धागा ऐसा कहा जाता है कि जो महिला इस पवित्र धागे को धारण कर लेता है। वह हमेशा-हमेशा के लिए अपने पति की हो जाती है। शास्त्रों में मंगलसूत्र को लेकर कई कहानी हैं आइए जानते हैं..
मंगलसूत्र के शुरूआत की कहानी (Story of origin of Mangalsutra)
शास्त्रों के अनुसार, मंगलसूत्र को विवाह का प्रतीक माना जाता है। इसलिए विवाह को बाद सुहागिन महिलाएं मंगलसूत्र धारण करती हैं। इतिहासकारों की मानें तो सिंधू घाटी की सभ्यता के दौरान मंगलसूत्र देखने को मिला था। उस समय सोने के धागे में काले मोतियों को पिरोकर महिलाओं द्वारा पहनाया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत सबसे पहले दक्षिण-भारत से हई। इसके बाद धीरे-धीरे यह उत्तर-भारत में प्रचलित हुआ। मंगलसूत्र सिर्फ भारत में ही नहीं नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के अलावा सीरियाई ईसाइयों जैसे गैर-हिंदू महिलाएं भी पहनती हैं। यह भी पढ़ेः क्यों मिला शनिदेव को अपने पिता से अधिक प्रतापी होने का वरदान, जानें पापों से मुक्ति दिलाने वाली कथा मंगलसूत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व (Religious and cultural importance of Mangalsutra)
भारतीय संस्कृति में हर एक परंपरा का कोई न कोई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। मंगलसूत्र का भी धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। काले मोतियों का उपयोग इसे बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, काले मोतियों में नकारात्मक शक्तियों को दूर रखने की क्षमता होती है, जो पति-पत्नी के रिश्ते को सुरक्षित रखती है। सोने की चमक इसे समृद्धि और शुभता का प्रतीक बनाती है।
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