संगम के पवित्र जल में पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ शुरू होगा और 26 फरवरी को महा शिवरात्रि के साथ समाप्त होगा। महाकुंभ का यह भव्य आयोजन दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और धार्मिक आस्था का सामूहिक कार्य है। इस धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वी, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं। महाकुंभ मेला एक पवित्र घड़े से गिरीं अमृत की चार बूदों का भव्य त्योहार है।
महाकुंभ की कुछ बुनियादी जानकरी, जो इसमें शामिल होने में करेंगी मदद
सनातन धर्म में महाकुंभ मेला एक भव्य और विशाल धार्मिक तीर्थयात्रा है। जिसका आयोजन 144 साल बाद होता है। वही कुंभ का 12 वर्ष की अवधि में चार बार आयोजन होता है। कुंभ और महाकुंभ यानि दोनों के लिए चार पवित्र स्थान निहित हैं। जिनमें से प्रत्येक स्थान एक पवित्र नदी से जुड़ा हुआ है।
कुंभ के स्थान
उत्तराखंड जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है। इसका प्रसिद्ध जिला हरिद्वार जो गंगा के किनारे वसा हुआ है। इसे धार्मिक आस्था का प्रतीक भी माना जाता है। मध्य प्रदेश का उज्जैन जिला, जिस स्वयं भगवान शंकर की नगरी कहा जाता है। यह पवित्र नदी शिप्रा के तट पर है। यहां भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित है। दुनिया भर में इसे महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है। नासिक जो गोदावरी नदी के तट पर वसा हुआ है। यह महाराष्ट्र के सबसे पवित्र और धार्मिक स्थानों में से एक है। यहां भी कुंभ का आयोजन होता है। प्रयागराज जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तर प्रदेश का सबसे पवित्र और धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती यानि तीनों पवित्र नदियों का मिलन है। जिसे दुनिया में त्रिवेणी संगम के नाम से जाना गया है। यहां पर कुंभ और महाकुंभ दोनों का भव्य आयोजन होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ और महाकुंभ मनुष्य के लिए मोक्ष प्राप्ति के मार्ग बताए गए हैं। कुंभ और महाकुंभ के शुभ अवसर पर नदियों में पवित्र डुबकी लगाना बहुत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान पृथ्वी पर गिरी अमृत की बूंदें इन पवित्र स्थानों पर गिरी थीं।
साधुओं के कुल अखाड़े
मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाडे हैं। जिसमें एक किन्नर अखाड़ा भी शामिल है। लेकिन यह अखाड़ा परिषद द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है। इस लिए यह जूना अखाड़े से जुड़ा हुआ है।
मुख्यरुप से 3 प्रकार के अखाड़े
शैव अखाड़े- इस अखाड़े के साधु भगवान शिव के उपासक होते हैं। वैष्णव अखाड़े- इस अखाड़े के से जुड़े सभी उपासक भगवान विष्णु की तपस्या करते हैं। उदासीन अखाड़े- यह अखड़े मुख्य रूप से गुरु नानक की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं।
अखाड़ों के नाम
जूना अखाड़ा
नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
निरंजनी अखाड़ा
निर्मोही अखाड़ा
निर्मल पंचायती अखाड़ा
महानिर्वाणी अखाड़ा
अटल अखाड़ा
आह्वान अखाड़ा
आनंद अखाड़ा
पंचाग्नि अखाड़ा
वैष्णव अखाड़ा
उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
उदासीन नया अखाड़ा
अखाड़ों के 3 सबसे बड़े पद
आचार्य महामंडलेश्वर- यह पद किसी भी अखाड़े का सर्वोच्च पद है। महामंडलेश्वर- आचार्य महामंडलेश्वर के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा पद माना जाता है। श्रीमहंत- यह पद अखाड़े के प्रशासनिक कार्यों के लिए होता है। श्रीमहंतों को ही अखाड़ों की प्रशाशनिक व्यवस्था करने का अधिकार होता है। नागा साधु संसार की सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करके अपने जीवन को मोक्ष और आत्म-साक्षात्कार पाने के लिए समर्पित कर देते हैं। यहां तक कि वह अपने शरीर पर वस्त्र धारण करना छोड़ देते हैं। नागा साधु आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ आयोजनों में ही देखे जाते हैं।
महाकुंभ में पवित्र स्नान के लिए 6 दिन महत्वपूर्ण
महाकुंभ के इस भव्य आयोजन में पवित्र स्नान की शुरुआत 13 जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा तिथि को होगी। जिसे शाही स्नान भी कहा जाता है। दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति के पर्व पर किया जाएगा। इसके बाद तीरसा शाही स्नान 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के दिन होगा। महाकुंभ में 3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के त्योहार पर चौथा पवित्र स्नान किया जाएगा।
वहीं 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा के दिन महांकुभ के दौरान संगम में श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाएंगे। इसके बाद 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के पर्व पर भक्त त्रिवेणी के संगम में शाही स्नान की डुबकी लगा कर भगवान महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
नगर प्रवेश और पेशवाई
नगर प्रवेश- महाकुंभ के इस भव्य आयोजन में साधु-संतों और तपस्वियों का आगमन अपने लावो-लश्कर के साथ होगा।
पेशवाई– इस दौरान अपने अखाडों से साधु-संत अपनी भव्य शोभायात्रा के साथ निकलते हैं और अपने-अपने अस्थाई आश्रमों में प्रवेश करते हैं। यह हाथी, घोड़े, ऊँट और हथियारों के साथ अपनी शक्ति और परंपराओं का प्रदर्शन करते हुए महाकुंभ में पहुंचते हैं।
कल्पवास
कल्पवास आम लोगों के लिए एक आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था से जुड़ा अभ्यास है। कल्पवास के दौरान आम जन सांसारिक सुखों को त्याग कर भगवान शिव की तपस्या करते हैं। यह पौष और माघ के शुभ महिनों में संगम के किनारे रह कर की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि यह आम लोगों के लिए मोक्ष प्राप्त करने का तरीका है।