सथूर को प्राचीन काल से ही धार्मिक नगरी कहा जाता है, लेकिन दिनों दिन यहां पर स्थित प्राचीन धार्मिक स्थलों का रखरखाव नहीं होने से स्थल उपेक्षित होने लगे हैं। वर्तमान में यहां पर एक दर्जन से अधिक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहां प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में लोग दर्शन करने को आते हैं। यहां पर नवरात्र स्थापना से लेकर दशमी तक प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु रक्त दंतिका माता के दर्शन को आते हैं।
महाशिवरात्रि पर सिंधकेश्वर महादेव स्थल में आयोजित मेले में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैद्यनाथ महादेव, मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि देवझर महादेव के स्थल पर श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां से निकलने वाली चंद्रभागा नदी सथूर होते हुए आगे निकलती हैं। जहां पर आधा दर्जन घाट बने हुए हैं।
सथूर में यह स्थल है
मार्केडेय ऋषि की तपोभूमि देवझर महादेव, वैद्यनाथ महादेव, सिंधकेश्वर महादेव, रक्तदंतिका माता, हर की पोड़ी, मझोला का देवजी, सास बहू कुंड, हाथी बड, नीलकंठ महादेव, चारभुजा मंदिर, भगवान विष्णु की चरण पादुका, केशवराय मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, देवजी की डूंगरी, सेवक माता, कृष्ण के तीन मंदिर, दानराय मंदिर, हुवालिया का बाग सहित चार घाट एवं दर्जनों अन्य छोटे—छोटे मंदिर स्थित है।
दशकों से बना हुआ है हर की पोड़ी का धार्मिक महत्व
किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद कई लोग हरिद्वार, गंगा स्थान पर नहीं जा पाते, उनके परिजन अस्थियों को चंद्रभागा नदी स्थित हर की पोड़ी में लाकर विसर्जित करते हैं। सिलसिला वर्षों से चला रहा है। इससे यहां हर की पोड़ी का महत्व काफी है।
सथूर पुष्कर राज धार्मिक स्थल से किसी प्रकार से कम नहीं है, लेकिन यहां पर प्रशासन व सरकार द्वारा प्राचीन धार्मिक स्थलों पर ध्यान रख रखाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां पर श्रद्धालु तो काफी संख्या में आते हैं, लेकिन स्थलों का रखरखाव नहीं हो रहा है।
सत्यनारायण शर्मा
तीन दशक पूर्व सथूर में धर्म प्रेमियों की बहार रहती थी। यहां पर रक्तदांतिका माता हो वैद्यनाथ स्थल पर लोगों का तांता लगा रहता था, लेकिन स्थलों की रख रखाव के अभाव में अब उपेक्षित हो रहे हैं।
बाबूलाल विजय, समाजसेवी सथूर
प्राकृतिक संपदा से भरपूर सथूर के धार्मिक स्थल उपेक्षा का शिकार हो रहे है। यहां पर लाइमस्टोन की प्रचुर मात्रा है। यहां से पत्थर बाहर जाता है। खनिज रायल्टी भी यहां की धार्मिक स्थलों पर खर्च कर दी जाए तो धार्मिक स्थल चकाचक हो सकता है।
भगवान जांगिड़, सथूर
सथुर गांव को प्राचीन समय में सूरतपुर के नाम से जाना जाता था। राजा सूरत ने इसकी स्थापना की थी। प्राचीन हर की पोड़ी का प्रसिद्ध स्थान है, वहां पर घाट निर्माण और चंद्रभागा नदी के किनारों का चंबल रिवर फ्रंट की तर्ज पर विकास कार्य हो तो पर्यटकों की तादाद बढ़ेगी। और अस्थियां विसर्जन करने हरिद्वार जाने वाले लोग सथुर में अस्थियां विसर्जित कर पाएंगे।
मुकेश कोटवाल, समाजसेवी
मारकंडेय ऋषि की तपोभूमि देवझर महादेव से बहती चंद्रभागा नदी तीन दशक से दम तोड़ रही है। सथूर का महत्व पुष्कर से कम नहीं है। जरूरत यहां के रखरखाव में प्रशासन व सरकार के सहयोग की है। गर्मी के मौसम में नदी में पानी सूख जाता है। यहां पर स्थलों पर प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। देवझर महादेव यहां का एक पर्यटक स्थल है,जो सथूर की गरिमा को स्थापित किए हुए हैं।
मनमोहन धाभाई, पूर्व सरपंच,ग्राम पंचायत सथूर
तीन दशक पूर्व बूंदी जिले का धार्मिक स्थल सथूर रहा है। यहां पर कार्तिक स्नान के लिए चंद्रभागा नदी पर हजारों की संख्या में महिलाएं पुरुष स्नान करने आते रहे हैं। यहां पर सास बहू कुंड,चारभुजा मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है ।
पन्नालाल धाबाई, समाजसेवी सथूर