गुरुनानक देव के छूते ही मीठा हो गया था खारे कुएं का पानी, खिल उठे थे लोगों के चेहरे
Gurunanak Jayanti 2024: विश्व कल्याण के लिए पूरी दुनिया में लगभग 80 हजार किलोमीटर की यात्रा करने और धर्म का संदेश देने वाले गुरुनानक देव ने भ्रमण के दौरान ग्वालियर से मध्य प्रदेश में प्रवेश किया। भोपाल, खंडवा, उज्जैन, ओंकारेश्वर, बैतूल सहित छह जिलों की यात्राएं कीं, यहां जानें कहां-कहां पड़े गुरुनानक देव के पावन चरण और एमपी के प्रमुख गुरुद्वारों के बारे में रोचक किस्से…
Gurunanak Jayanti 2024: गुरुनानक देव का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। यह ऐसा समय था जब भारत बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा था। समाज की स्थिति दयनीय थी। मध्ययुगीन काल में भारत के लगभग सभी हिस्सों में संत और धर्मगुरु समाज को एकता और समरसता में पिरोने के प्रयास में लगे थे।
पंजाब के ननकाना (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुरुनानक देव ने विश्व कल्याण के लिए पूरी दुनिया में लगभग 80 हजार किलोमीटर की यात्रा की और धर्म का संदेश दिया। भ्रमण के दौरान उन्होंने ग्वालियर से मध्य प्रदेश में प्रवेश किया। भोपाल, खंडवा, उज्जैन, ओंकारेश्वर, बैतूल सहित छह जिलों की यात्राएं कीं। नानकजी के प्रकाश पर्व पर पत्रिका.कॉम आपको बता रहा हैं एमपी के प्रमुख गुरुद्वारों के महत्त्व के बारे में… जहां गुरुनानक देव का आगमन हुआ….
गुरुनानक टेकरी- गुरु नानकजी के जल छिड़कते ही ठीक हो गया था कुष्ठ रोग
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के ईदगाह हिल्स क्षेत्र में भी गुरुनानक देव का आगमन हुआ था। यहां गुरुद्वारा गुरुनानक टेकरी में गुरु नानकदेवजी का आगमन हुआ था। बताया जाता है कि यहां उन्होंने एक कोढ़ी गणपत लाल की कोढ़ की लाइलाज बीमारी को ठीक किया था। इस स्थान पर गुरु नानकदेव रुके थे, उसे अब गुरुद्वारा गुरुनानक टेकरी कहा जाता है।
इतिहास बताता है कि गणपत लाल राजा भोज का दरबारी था। उसके पूरे शरीर पर कोढ़ हो गई थी। उस समय छुआछूत की बीमारी समझा जाने वाला और हेय दृष्टि से देखा जाने वाला ये लाइलाज रोग होने के कारण वह जंगल में झोपड़ी बनाकर रहने लगा।
एक दिन जब पीर जलालुद्दीन यहां से गुजरे तो गणपत ने उनके पैर पकड़ लिए। जलालुद्दीन ने कहा, तुम्हारा उद्धार सिर्फ नानक बाबा ही करेंगे। इसके बाद गणपत गुरुनानकजी का ध्यान करने लगा। पुकार सुनकर गुरुदेव यहां पहुंच गए। गणपत ने पीड़ा से मुक्ति के लिए गुहार लगाई। तब गुरुदेव ने जल मांगा। आसपास जल नहीं मिला तो गुरुदेव ने कहा कि पहाड़ी के नीचे जल है।
इसके बाद वहां से पानी लाया गया और गणपत पर छिड़का गया। जल छिड़कते ही गणपत बेहोश हो गया। आंख खुली तो उसे कोढ़ से मुक्ति मिल चुकी थी, लेकिन गुरुदेव वहां नहीं थे। हालांकि नानकजी के चरण चिह्न वहां दिखाई दे रहे थे। आज भी यहां गुरु नानकदेव के चरणों के निशान विद्यमान हैं, जहां हजारों लोग पहुंचकर माथा टेकते हैं। इसी प्रकार जिस स्थान से पानी लाया था और कोढ़ी की कोढ़ ठीक हुई थी वहां अब माऊली साहिब गुरुद्वारा है।
बेटमा साहिब गुरुद्वारा- यहां मीठा हो गया खारा पानी
इंदौर का बेटमा गुरुद्वारा साहिब देशभर में प्रसिद्ध है। यहां 12 महीने अटूट लंगर चलता रहता है। लगभग 500 वर्ष पूर्व गुरुनानक देवजी अपनी दूसरी उदासी (जन कल्याण भ्रमण यात्रा) पर इस स्थान पर आए थे। बेटमा गुरुद्वारा में कुआं है। पहले यहां का पानी खारा होता था। गुरुनानक देव के आगमन पर खारे पानी की समस्या ग्रामीणों ने उन्हें सुनाई। कहा जाता है कि समस्या सुनाते ही कुएं का खारा पानी मीठा हो गया।
तवारीख गुरु खालसा में इस बात का जिक्र है कि गुरु नानक देव आबू पहाड़ से उतरकर सतनाम का बीज बीजते हुए यहां पहुंचे। इस इलाके में आतंक के लिए पहचाने जाने वाले एक वर्ग को अहिंसा का उपदेश दिया। यह स्थान गुरु नानक चरणपादुका के नाम से 1964 में श्री गुरु सिंघ सभा, इंदौर के तहत रजिस्टर्ड है। 1964 में इस स्थान की सेवा श्री गुरु सिंघ सभा इंदौर द्वारा ली गई।
गुरुनानकजी ने इमली के पेड़ के नीचे दिया था संदेश
इंदौर के यशवंत रोड चौराहा स्थित इमली साहिब गुरुद्वारे है। इसका इतिहास भी गुरुनानक देव से जुड़ा है। श्री गुरु सिंघ सभा इंदौर द्वारा विशाल और सुंदर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। गुरुद्वारा साहिब के साथ ही श्रीगुरु रामदास सराय बनाई गई है, इसमें संगतों के रुकने के लिए व्यवस्थित कमरे हैं। गुरु का लंगर भी निरंतर चलता रहता है।
गुरु नानकदेव संवत 1568 को उनकी दूसरी उदासी (जन कल्याण भ्रमण यात्रा) के दौरान दक्षिण से इंदौर आए। कान्ह नदी के किनारे इमली के वृक्ष के नीचे उन्होंने अपना आसन लगाया। शब्द की महत्ता का वर्णन किया। भाई मरदाने की रबाब के साथ गुरु के अमृत रूपी वचन सुनकर इंदौर की संगतें निहाल हुईं। उस समय होलकर स्टेट की रक्षा के लिए जो फौजी पंजाब से आए थे, उन्होंने यहां की सेवा संभाली थी।