दरअसल, सरकारी कॉलेजों में मेडिकल के छात्रों की फीस निजी कॉलेजों के मुकाबले कम लगती है। इसका कारण स्पष्ट है कि, अधिकतर खर्च इसमें सरकार ही वहन करती है। हालांकि, इसके बदले में सरकार की ओर से ये शर्त होती है कि, डिग्री पूरी होने के बाद उन्हें कुछ समय के लिए प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में ही सेवाएं देनी होगी। ऐसे में जो भी छात्र सरकार की इस शर्त को नहीं मानना चाहता तो सरकार भी उसकी पढ़ाई पर खर्च होने वाली राशि को उनसे जमा करा लेती है।
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प्रदेश के इन कॉलेजों से पास हुए हैं 1106 डॉक्टर
पता चला है कि पिछले 10 वर्षों में भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज समेत इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा के मेडिकल कॉलेजों से पास हुए 1106 डॉक्टरों ने बांड की शर्तों का पालन ही नहीं किया और लापता हो गए। बताया जा रहा है कि, सरकार उन्हें बीच बीच में लिखकर इसका जवाब मांगती रही, लेकिन उन डॉक्टरों की तरफ से अबतक कोई जवाब नहीं मिला है।
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क्या कहते हैं जिम्मेदार ?
इस संबंध में मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ.आरके निगम का कहना है कि, 10 वर्षों से संबंधित डॉक्टर गायब हैं। इस संबंध में पिछले दो साल से नोटिस जारी किए जा रहे हैं, लेकिन उन नोटिस का कहीं से कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है। एडवोकेट अजय गौतम का कहना है कि नोटिस की तामील के लिए यदि मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल पुलिस की मदद लेगी तो सारे डॉक्टरों का जवाब मिल जाएगा। ये बात और है कि, मेडिकल काउंसिल वाले मामले को लंबा खींचना चाहते हों।
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