READ: बैंड की धुन पर जयघोष के साथ मिलाए कदम से कदम एक बारगी कौशल्या को लगा, जैसे उसके सारे सपने छीन गए। लेकिन उसकी सिलाई से आसपास की महिलाएं काफी प्रभावित थी। महिलाओं ने कौशल्या का आत्मविश्वास नहीं खोने दिया। वह सब उसे सिलाई सिखाने के लिए दबाव बनाने लगी। घर पर ही 1987 में 50 रुपए महीने के हिसाब से छह महिलाओं को सिलाई सिखाना शुरू किया। कौशल्या की मेहनत रंग लाई और सिलाई प्रशिक्षण के जरिए उसने छोटी सी उम्र में एक किडनी के सहारे अपने परिवार का पालन पोषण किया। उसने महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। सिर्फ पैसों के लिए ही नहीं, वह अभावग्रस्त व जरूरतमंद महिलाओं को नि:शुल्क सिलाई प्रशिक्षण देकर मदद भी करने लगी।
READ: सीमा पर दुश्मनों से जीते, अपनों से हारे 31 साल से सिखा रही सिलाई 59 वर्षीय कौशल्या इकत्तीस वर्ष से महिलाओं व युवतियों को सिलाई का प्रशिक्षण दे रही है। रोज 5 से 6 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही है। छुट्टियों में एक बैच में तीस महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। अब तक 5 हजार से अधिक महिलाएं व युवतियां सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर आत्मनिर्भर बन चुकी है। प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं व युवतियां आज शहर में प्रतिष्ठित संस्थानों पर हैल्पर व टेलरिंग कार्य कर रही है।
बेटे-बेटी को बनाया स्वावलंबी कौशल्या ने बताया कि सिलाई प्रशिक्षण के पैसों से ही उसने बापूनगर में घर बनाया और एक बेटे व एक बेटी को ग्रेजुएशन कराकर शादी भी करवाई। बेटा मोबाइल शॉप तो बेटी कैड सेंटर ब्रांच की संचालक है। वह जरूरतमंद महिलाओं को नि:शुल्क सिलाई का प्रशिक्षण देकर रोजगार के लिए तैयार कर रही है। दो साल पूर्व पति गुरदास का स्वर्गवास हो गया। वर्तमान में उसने बापूनगर स्थित अपने ही मकान में कौशिक सिलाई प्रशिक्षण केंद्र खोला हुआ है। जहां पांसल, पुर, गांधीनगर, आरके-आरसी व्यास कॉलोनी, आजाद नगर व सुभाष नगर सहित अन्य स्थानों से काफी संख्या में महिलाएं और युवतियां सिलाई प्रशिक्षण लेने आती है।