शहर के आजाद चौक व बाजार नंबर तीन में करवा चौथ की खरीदारों की रौनक ज्यादा है। दुकानों के साथ सड़क पर करवे बिक रहे हैं। शहर में हजारों चीनी के करवे तैयार हो चुके हैं। मिट्टी के करवे भी खूब बिक रहे हैं। हालांकि मिट्टी की जगह अब महिलाएं चीनी के करवे ज्यादा पसंद कर रही है।
बाजार नंबर तीन में भट्टियों पर 1500 से 2000 हजार चीनी के करवे तैयार हो रहे हैं। व्यापारी विनोद अग्रवाल ने बताया कि करवा चौथ के लिए शहर में हजारों करवे तैयार हैं। एक भट्टी पर एक दिन में करीब 2 हजार करवे तैयार किए जा रहे हैं। शहर में आधा दर्जन से अधिक दुकानदार करवे तैयार करते है। चीनी के करवे भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़ जिले के आस-पास के कस्बों में जा रहे हैं। चीनी का एक करवा 30 रुपए में बेचा जा रहा है। इन चीनी करवों का उपयोग सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के परिवार के लोग करते हैं। भीलवाड़ा में उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं।
मिट्टी के करवों का महत्व भले ही मिट्टी के करवों की जगह अब चीनी के करवों ने ले ली हो, लेकिन मिट्टी के करवे भी खूब बिक रहे हैं। सड़कों के साथ कुछ मिट्टी के बर्तनों की दुकानों पर ये करवे बिक रहे हैं। कुछ महिलाएं अभी भी मिट्टी के करवों से चौथ माता की पूजा करती है। पंडित अशोक व्यास ने बताया कि करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा यानी की मिट्टी का बर्तन और चौथ यानी गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे की पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं चौथ माता की पूजा में करवे का उपयोग करने के अलावा रात को चंद्रदेव को जल अर्पण भी करवे से ही करती है।