टूटी उम्मीदों को रिश्तों की डोर से जोड़ रहे समाजसेवी दंपत्ती
कोरोना में छोड़ गए मां-बाप, अब समाजसेवी दंपत्ती करेंगे अनाथ बच्ची के हाथ पीले
टूटी उम्मीदों को रिश्तों की डोर से जोड़ रहे समाजसेवी दंपत्ती
भरतपुर. कोरोना में मां-बाप के छोडक़र चले जाने से अनाथ हुई पथवारी मोहल्ला की बेटी 30 अप्रैल को विवाह बंधन में बंधेगी। रिश्तों की इस डोर को जोडऩे में अनाथ बच्ची के मददगार बनेंगे शहर के एक समाजसेवी दंपत्ती। जो पिछले 15 साल से अनाथ बच्चियों के मां-बाप का फर्ज निभा रहे हैं।
शहर के नदिया मोहल्ला निवासी पुष्कर सिंह और उनकी पत्नी ऊषा सिंह साल 2008 से अनाथ बच्चियों के हाथ पीले करा रहे हैं। दोनों दंपत्ती मिलकर बूंद-बूंद राशि जोड़ते हैं और इकट्ठा कर अनाथ बच्चियों के कन्यादान का कार्य करते हैं। पुष्कर सिंह जहां प्रतिदिन अपनी गुल्लक में 100 रुपए डालकर जोड़ते हैं तो पत्नी भी अपने हाथखर्च से बचत कर पति के इस सेवाकार्य में योगदान देती है। दोनों मिलकर 60 से 70 हजार एकत्रित होने पर अनाथ बच्ची की शादी का पूरा जिम्मा उठाते हैं और उसका कन्यादान करते हैं।
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दादी से मिली प्रेरणा
पुष्कर सिंह बताते हैं कि उन्हें अनाथ बच्चियों की शादी करने की प्रेरणा उनकी दादी प्रीतम कौर से मिली। वे बताते हैं कि उनके दादा भैरो सिंह और दादी प्रीतम कौर दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने दादा को तो नहीं देखा, लेकिन दादी कहा करती थी कि जीवन में यदि कुछ लायक बन जाओ तो एक अनाथ बच्ची का कन्यादान जरूर करना। बस उनकी प्रेरणा से दंपत्ती ने इसे करने का प्रण ठाना। वे अब तक 12 बेटियों की शादी करा चुके हैं। उनकी दादी के नाम पर जवाहर बुर्ज पर श्रीमती प्रीतम कौर महाविद्यालय भी है।
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ये भी बने सहभागी
अनाथ बच्ची की शादी में दंपत्ती के अलावा शहर के दो भामाशाह और आगे बढक़र आए हैं। पुष्कर सिंह ने बताया कि अनाथ बच्ची की शादी के बारे में पता चलने पर शहर के रहने वाले व्यक्ति ने अपना मैरिज होम भी फ्री कर दिया है। साथ ही शहर के एक मशहूर बैंड ने भी शादी में नि:शुल्क योगदान की जिम्मेदारी ली है।
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