डॉ.रूमा का जन्म बाड़मेर के छोटे से गांव रावतसर में 1988 में हुआ। जब चार साल की थी, तब मां साया सिर से उठ गया। आठवीं तक जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण करने के बाद अन्य हजारों लड़कियों की तरह उन्हें भी स्कूल से अलग दिया गया और शादी कर दी गई। ससुराल की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से इलाज के अभाव में दो दिन का बेटा हमेशा के लिए अपनी मां डॉ. रूमा को छोड़ गया। इसके बाद उन्होंने कुछ करने की ठानी।
बचपन में दादी से सीखा कशीदाकारी के काम से शुरूआत की। दीप-देवल नामक स्वयं सहायता समूह का गठन कर कशीदाकारी कार्य शुरू किया ताकि परिवार में कुछ आमदनी हो सके। इस आय से छोटी-छोटी बचत कर एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी एवं स्थानीय व्यापारियों के लिए हस्तशिल्प के बैग्स, कुशन कवर आदि उत्पाद बनाना शुरू किया।
यहां से हुई सफलता की शुरुआत
अपने काम में नवाचार के लिए समूह की महिला दस्तकारों के साथ 2008 में बाड़मेर के एक गैर सरकारी संगठन ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से जुड़ कर कार्य करने लगी। संस्था बाड़मेर जिले की महिला दस्तकारों के हितों के लिए पहले से ही कार्य कर रहा था। संस्थान के सहयोग से दस्तकारों को कच्चा माल प्रदान कर कशीदाकारी उत्पाद तैयार करवाए एवं उत्पादों की बिक्री के लिए सीधे देश के विभिन्न मेट्रो शहरों में आयोजित होने वाली प्रदर्शनियों में भेजना शुरू किया। जहां कीमत भी मिली और सफलता भी।
22 हजार से अधिक महिलाओं को कर रही लाभान्वित
ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के अध्यक्ष के रूप में साल 2010 में कार्य करना शुरू किया और बाड़मेर जिले के गाव-गांव, ढाणी-ढाणी अपने सेंटर स्थापित कर कम्युनिटी मोबिलाइजेशन, स्किल विकास प्रशिक्षण, डिज़ाइन विकास प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता एक्सपोजऱ विजिट, देश विदेश की क्राफ्ट प्रदर्शनियों में भागीदारी, स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं प्रशिक्षण, शिल्पी पहचान पत्र तैयार कर दस्तकारों को सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाना, समूहों को विपणन गतिविधियों से जोडऩा, फैशन शो के माध्यम से कला का प्रमोशन करना जैसे कार्यक्रम आयोजित कर बाड़मेर जिले की 22 हजार महिला दस्तकारों को लाभान्वित किया। संस्था से जुड़ी महिला दस्तकार वर्तमान में प्रदर्शनियों, सरकार की विपणन गतिविधियों एवं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से खुद का व्यापार कर रही है एवं राजस्थान की कला एवं संस्कृति को देश-विदेश में पहचान दिला रही है।
कई पुरस्कारों मिले, हार्वर्ड तक पहुंची
डॉ. रूमादेवी को पिछले साल राष्ट्रपति ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। केबीसी ने भी उन्हें कार्यक्रम में नारी शक्ति की पहचान के रूप में आमंत्रित किया था। अनगिनत पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी डॉ. रूमादेवी की आज एक अलग ही पहचान बन चुकी है। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में नारी शक्ति के रूप में आज उन्हें देखा जा रहा है। पिछले दिनों वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित कांफ्रेंस में स्पीकर के रूप में शामिल हुई। जहां उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की छात्राओं को कशीदे की कला की बारीकियां भी समझाई।