पहले से होती बैरिकेडिंग तो नहीं होता हादसा
हादसे के वक्त पुल पर कोई बैरिकेडिंग नहीं थी। वाहनों का आवागमन रोकने के लिए बनाई गई सुरक्षा दीवार काफी पहले टूट गई थी। उसे दोबारा नहीं बनवाया गया। हादसे के कुछ ही घंटे बाद वहां ईंटों का चट्टा लगा दिया गया था। अगले 24 घंटे के भीतर इसी दीवार को पक्का कराया गया। पुल से 250 मीटर दूर एप्रोच रोड पर कंक्रीट के बोल्डर रखवाए गए। इसके साथ ही बालू की बोरियां रखवाकर दो और अवरोधक बनाए गए हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि जब कुछ शरारती युवाओं ने दीवार गिराई थी, अगर उसी वक्त अभियंता इसका संज्ञान लेते तो हादसे को रोका जा सकता था।
जिम्मेदारों के खिलाफ विभागीय जांच शुरु
लोक निर्माण विभाग के अभियंताओं ने न तो अवरोधक लगाये न ही रिफ्लेक्टर और संकेतक बोर्ड लगवाए। गूगल ने भी मैप पर टूटे पुल को अपडेट नहीं किया। नेविगेशन देखकर कार सवार बढ़ते गए। हादसा हुआ तो पीडब्ल्यूडी के अभियंताओं की कमियां सामने आईं। इसके बाद अब अभियंताए दोतरफा जांच के घेरे में आ गए हैं। एक तरफ पुलिस विवेचना कर रही है तो दूसरी ओर विभागीय जांच भी हो रही है। पुलिस की जांच में दीवार तोड़ने वाले शरारती युवा भी चिह्नित किए जाएंगे। फिलहालए इन्हें अज्ञात दर्शाया गया है।
पुल पर 55 करोड़ खर्च करन के बाद भी हवा में लटका पुल
हवा में लटके पुल को बनाने में लोक निर्माण विभाग ने 55 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, लेकिन एप्रोच रोड बनाने के लिए 29.50 लाख खर्च करने में देरी हुई। नतीजा 14 महीने से पुल हवा में लटका है। अभियंताओं की देरी और लापरवाही ने तीन लोगों की जान ले ली। दातागंज क्षेत्र के विधायक राजीव कुमार सिंह ने बताया कि पुल के एप्रोच मार्ग के निर्माण में देरी का मुद्दा वह विधानसभा में उठा चुके हैं। अब हादसे के लिए जो जिम्मेदार हैं, उन पर कार्रवाई की जाएगी। मॉडल स्टडी के लिए बजट दिलाने के लिए शासन में पैरवी करेंगे। हादसे के पीड़ितों को भी राहत दिलाने के लिए मुख्यमंत्री को लिखेंगे।