इन मौतों के कारणों का विश्लेषण करने पर यह पाया गया कि मरीजों को अस्पताल में भर्ती के समय ऑक्सीजन की मात्रा 80 प्रतिशत से कम रही थी और मृत्यु भर्ती के 24 घंटे से लेकर 20 दिन के बीच में हुई। इसमें से बहुतों की जिन्दगी बचाई जा सकती थी, यदि मरीज या मरीज के परिजनों को कोविड के रेड फ्लैग साइन की जानकारी होती और समय रहते इलाज प्रारंभ हो जाता।
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कोविड प्रभारी डॉ. शैलेंद्र गुप्ता ने बताया कि कोविड संक्रमण में हो रही मृत्यु का प्रमुख कारण कोविड संक्रमण से फेफड़े का खराब होना होता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों को ऑक्सीजन की मात्रा नहीं मिलती व खून में थक्का जमने लगता है। इस स्थिति में मरीज को सभी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बाद भी बचाया नहीं जा सकता।
कोरोना संक्रमण का रेड फ्लैग साईन अर्थात् खतरे की घंटी को पहचानना जरूरी है। यह खतरे की घंटी ऑक्सीजन मापक यंत्र अर्थात ऑक्सीमीटर
(Oxymeter) से ही पता चलता है। ऑक्सीमीटर में यदि शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा 95 या 95 प्रतिशत से कम है तो ऐसी स्थिति में चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
ऐसे मरीज यदि होम आइसोलेशन में हैं तो उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। इस समय ध्यान नहीं दिया गया तो मरीज के लिये कोराना संक्रमण प्राणघातक साबित होता है।
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क्या करें यदि ऑक्सीजन की मात्रा 95-90 प्रतिशत की होऑक्सीजन कम होने पर पेट के बल आधे घंटे तक लेटे, इससे फेफड़े में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ जाता है। इसे दिन में 3 से 4 बार करें। चिकित्सकीय सलाह लें। चिकित्सकीय सलाह पर स्टेरॉयड एवं खून पतला करने वाली दवाई चालू कर फेफड़े एवं अन्य अंगों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।
ऑक्सीजन लेवल मापने ऑक्सीमीटर प्रभावकारी यंत्र है जिससे कोविड के संक्रमण से उत्पन्न शरीर में ऑक्सीजन की कमी को समय रहते पहचान की जा सकती है व रेड फ्लैग साइन की पहचान कर सजग रहते हुये मरीजों को शत-प्रतिशत बचाया जा सकता है।
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क्या है स्वीट हाईपॉक्सियाकोरोना संक्रमित मरीज (Covid patient) में
स्वीट हाईपॉक्सिया होता है सामान्यत: शरीर में 2-5 प्रतिशत ऑक्सीजन की कमी बेचैनी घबराहट सांस लेने में तकलीफ पैदा करती है। कोविड संक्रमित व्यक्ति के शरीर में 10-20 प्रतिशत तक की ऑक्सीजन की कमी शरीर में कमजोरी की जबकि अन्य कोई अन्य लक्षण उत्पन्न नहीं करती जिसे स्वीट हाइपॉक्सिया कहा जाता है।
ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी से शरीर के अन्य अंग शिथिल होते चले जाते हैं और जब 20 प्रतिशत से भी ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है तो बेचैनी और घबराहट शुरू होती है फिर मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है।