कर्ण पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता थे। आपको बता दें कि माता कुंती का विवाह पाण्डु के साथ हुआ था लेकिन कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले ही हो गया था। कर्ण की खासियत ये थी कि वो कभी भी किसी को भी दान देने से पीछे नहीं हटते थे। कोई उनसे कुछ भी मांगता था तो वो दान जरूर देते थे और महाभारत के युद्ध में यही आदत उनके वध की वजह बनी।
कर्ण के पास जो कवच और कुंडल था उसके साथ दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें हरा नहीं सकती थी और महाभारत युद्ध के दौरान ये बात पांडवों को नुकसान पहुंचा सकती थी ऐसे में अर्जुन के पिता और देवराज इन्द्र ने कर्ण से उनके कवच और कुण्डल को लेने की योजना बनाई की वह मध्याह्न में जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा होता है तब वह एक भिक्षुक का वेश धारण करके उनसे कवच और कुण्डल मांग लेंगें। सूर्यदेव इन्द्र की इस योजना के बारे में कर्ण को सावधान भी करते हैं इसके बावजूद कर्ण अपने वचनों से पीछे नहीं हटते हैं।
बता दें कि कर्ण की इस दानप्रियता से खुश होकर इंद्र ने उन्हें कुछ मांगने को कहते हैं लेकिन कर्ण ये कहकर मना कर देते हैं कि “दान देने के बाद कुछ मांग लेना दान की गरिमा के विरुद्ध है”। तब देवराज इंद्र कर्ण को अपना शक्तिशाली अस्त्र वासवी प्रदान करते है जिसका प्रयोग वह केवल एक बार ही कर सकते थे। आपको बता दें कि जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तब श्री कृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया और कवच-कुण्डल ना होने की वजह से उनके प्राण चले गए।
ऐसा कहा जाता है कि कर्ण के कवच और कुण्डल के देवराज इंद्र स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सके क्योंकि उन्होंने झूठ से इसे प्राप्त किया था ऐसे में उन्होंने इसे समुद्र के किनारे पर किसी स्थान पर छिपा दिया इसके बाद चंद्र देव ने ये देख और वो उस कवच और कुण्डल को चुराकर भागने लगे तब समुद्र देव ने उन्हें रोक लिया और इसी दिन से सूर्य देव और समुद्र देव दोनों मिलकर उस कवच और कुण्डल की सुरक्षा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस कवच और कुण्डल को पुरि के निकट कोणार्क में छिपाया गया है और कोई भी इस तक पहुंच नहीं सकता है। क्योंकि अगर कोई इस कवच और कुंडल को हासिल कर लेता है तो वो इसका गलत फायदा उठा सकता है।