सदस्यों ने यह भी पाया कि गेट पर एक प्रतिमा भी मौजूद थी जो अब गायब है। जबकि शहतीर पर दोनों ओर तीन-तीन प्रतिमाएं उत्कीर्ण दिखाई देती हैं। इस मौके पर ग्रुप के विजय चतुर्वेदी, देवेश आर्य, कैलाश सक्सेना, अरविंद श्रीवास्तव, शिवनारायण शर्मा, ओपी चतुर्वेदी, मनमोहन बंसल, अनिल पुरोहित, चक्रवर्ती जैन, प्रवीण शर्मा, सुरेंद्र राठौर, सचिन तिवारी, सोहेल अहमद, शिवकुमार तिवारी, मनोज शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, सुभाष जैन, हरिहर चतुर्वेदी, हरिसिंह यादव, भूपेंद्र सिंह राजन, राजेंद्र नेमा, राजू ठाकुर आदि मौजूद थे।
रायसेन गेट का बारीकी से मुआयना करने पर ग्रुप के सदस्यों ने इसके संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता बताते हुए कहा कि गेट के ऊपर की झाडिय़ों को पूरी तरह हटाने और खिसकते पत्थरों को फिर सीमेंट-कांक्रीट से पक्का करने की जरूरत है, ताकि रायसेन गेट की उम्र बढ़ सके और कभी किसी हादसे की आशंका भी न रहे। सभी सदस्यों ने इसके लिए कलेक्टर से मिलने का निर्णय लिया ताकि विदिशा की इस पहचान को संरक्षित और सुरक्षित किया जा सके।
विरासत ग्रुप के सदस्यों को इतिहासकार गोविंद देवलिया ने बताया कि विदिशा का किला नगर की प्राचीन पहचान थी, आधे से अधिक शहर को आज भी किले अंदर के नाम से पहचाना जाता है। किले अंदर मतलब, किले के परकोटे के उसकी बाउंड़्री वाल के अंदर की बस्ती। इस किले के चार दरवाजे थे, इनमें से एक बैस दरवाजा, दूसरा गंधी दरवाजा, तीसरा खिडक़ी दरवाजा और चौथा रायसेन दरवाजा कहलाता था, जिसे अब रायसेन गेट कहते हैं। चार में से मात्र रायसेन गेट ही अब बचा है, जिसके कारण हम यह समझ पाते हैं कि यहां अंदर की ओर कभी किला हुआ करता था।