नीमताल के साथ ही बेतवा के विभिन्न घाटों पर भी भुजरिया विसर्जन हुआ। बेतवा के बड़ वाले घाट पर होमगार्ड की टीम भी तैनात रही। शाम 4 बजे के बाद से भुजरिया लेकर सावन गीतों को गाते हुए महिलाएं नदी और नीमताल की ओर निकल पड़ीं थीं। बेतवा घाट पर पहुंचकर भुजरियों को एक साथ रखा गया और फिर उन पर गेंहू के दानों को बरसाते हुए परिक्रमा की गई। विदाई के पहले पूजा हुई और फिर नदी में विसर्जन। विसर्जन के साथ ही कुछ भुजरियों को नहलाकर उन्हें तोडकऱ अलग किया गया, जिसमें से सबसे पहले भुजरिया नदी घाटों पर स्थित देव प्रतिमाओं को अर्पित की गई। यही क्रम नीमताल पर भी चला। अलग-अलग समूहों में भुजरियों को अपने सिर पर धारण कर लाने का क्रम देर तक चला। बीच बीच में लहंगी नृत्य की भी झलक कई जगह दिखाई दी। शाम से देर रात तक भुजरिया के आदान प्रदान और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने और सभी से सद्भाव बनाए रखने की कामना का क्रम जारी रहा।
भुजरिया के मौके पर बजरिया से जाहरवीर गोगाजी महाराज की छड़ी यात्रा भी धूमधाम से निकाली गई। गाजे बाजे के साथ निकली इस यात्रा में समाज के अनेक सरदार शामिल हुए। नीमताल पर भी आयोजन हुआ।