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इन दो संस्कृत के जानकार मुस्लिमों को मिल चुका है पद्मश्री, उधर BHU में प्रो फिरोज खान का हो रहा विरोध

-इन दो मुस्लिम संस्कृत विद्वानों में एक तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हैं करीबी-दूसरे को मौजूदा बीजेपी सरकार ने ही दिया है पद्मश्री- वेद-पुराण पर काम करने वाली छात्रा को खुद पीएम मोदी कर चुके हैं सम्मानित
 

वाराणसीNov 19, 2019 / 01:26 pm

Ajay Chaturvedi

BHU

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वाराणसी. सदियों से भारत वर्ष में संस्कृत शिक्षा के दो ही केंद्र रहे हैं एक काशी तो दूसरा कश्मीर। बात अगर बनारस की हो तो इसे गंगा जमुनी संस्कृति का ध्वजवाहक माना गया है। वह काशी का ही पंचगंगा घाट है जहां भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान रियाज करते रहे। महामना मदन मोहन मालवीय की कर्मभूमि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदू व मुस्लिम का भेद-भाव नहीं रहा। यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही साथ-साथ न केवल अध्ययन करते रहे हैं बल्कि किसी भी विभाग में अध्यापन भी करते रहे हैं। लेकिन अब इसी विश्वविद्यायल में एक मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर पिछले 12 दिन से छात्रों का एक गुट लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहा है, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन लगातार तर्क दे रहा है कि यह नियुक्ति जायज है विषय विशेषज्ञों की सहमति से पूरी पारदर्शिता के साथ नियुक्ति हुई है।
भाजपा ने ही प्रो नाहिद को दिया है पद्मश्री

बता दें कि यह काशी ही है जहां के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के संस्कृत विद्वान प्रो नाहिद आबीदी को इस भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संस्कृत भाषा में उनके योगदान के लिए 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें डीलिट की उपाधि भी मिली है। 2016 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था।
मिर्जापुर जिले की निवासी हैं नाहिद

संस्कृत की विद्वान नाहिद आबिदी मूल रूप से मिर्जापुर जिले की निवासी हैं। भाषा के लिए उनके काम के मद्देनजर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। मिर्जापुर के केवी डिग्री कॉलेज से संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद नाहिद आबिदी ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से पीएचडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने 2005 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अवैतनिक शिक्षक के रूप में पढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन जल्द ही उन्हें काशी विद्यापीठ में पार्ट टाइम लेक्चरर के रूप में नौकरी मिल गई।
वेद, भगवद्गीता, उपनिषद, गीता, पुराण में समानता पर लिखते रहते हैं डॉ हनीफ

वहीं सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र के रहने वाले डॉ. हनीफ खान शास्त्री कुरान, वेद, भगवद्गीता, उपनिषद, गीता, पुराण में समानता पर लिखते रहते हैं। देश-विदेश में प्रवचन भी करते हैं। एक बार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद वियतनाम की राजधानी हनोई गए थे। वहां गेस्ट हाउस में बैठे थे, उसी समय गीता और पुराण में मानवीय सद्भावना पर दूरदर्शन लेक्चर टेलिकास्ट हो रहा था, जब राष्ट्रपति भारत लौटे तो उन्होंने डॉ. हनीफ शास्त्री को राष्ट्रपति भवन बुलाया और कहा कि मैं वियतनाम में आपका लेक्चर सुन कर प्रभावित हुआ।
संस्कृत साहित्य में काम के लिए डॉ हनीफ को मिला पद्मश्री

डॉ. हनीफ खां शास्त्री को साहित्य और शिक्षा के बीच असाधारण फर्क को समझाने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने वाराणसी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए किया और पुराण के बारे में गहन अध्ययन किया. आचार्य, शास्त्री और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। नई दिल्ली के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी में बतौर संस्कृत प्रोफेसर सेवाएं दीं।
बनारस की मुस्लिम छात्रा को पीएम दे चुके हैं गोल्ड मेडल

अगर बात करें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की तो यहां के संस्कृत विभाग की छात्रा शाहिना को 2016 में खुद प्रधानमंत्री ने बीएचयू का गोल्ड मेडल दिया। शाहिना भी वेद,पुराण और उपनिषद पर ही शोध कर रही हैं।
फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर छात्रों का एक गुट दे रहा धरना

लेकिन अब इसी बनारस और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जब पिछले दिनों संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संस्थान में असोसिएट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति हुई तो भाजपा के ही आनुशांगिक संगठन से जुड़े छात्रों ने उसका विरोध शुरू कर दिया। विगत 12 दिनों से आंदोलित ये छात्र लगातार होल्कर भवन के सामने धरना दे रहे हैं जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन लगातार इस नियुक्त को जायज ठहरा रहा है।
फिलहाल भूमिगत हैं प्रो फिरोज
इन छात्रों के विरोध के चलते प्रो फिरोज फिलहाल भूमिगत हैं। वह मोबाइल फोन तक स्विच ऑफ कर रखा है। ह्वाट्सएप के माध्यम से कुछ गिने-चुने लोगों से ही बात कर रहे हैं।
राजस्थान सरकार कर चुकी है ‘संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान’ से सम्मानित
बता दें कि गत 14 अगस्त को डॉ फिरोज को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संस्कृत दिवस की पूर्व संध्या पर ‘संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान’ से सम्मानित किया। आयोजन के दौरान कई अन्य संस्कृत विद्वानों को सम्मानित किया गया था, लेकिन वह एकमात्र मुस्लिम थे।
बचपन से था संस्कृत से लगाव
डॉ. फिरोज को कम उम्र से ही संस्कृत से लगाव रहा है। बताया जाता कि उन्होंने कक्षा 2 में गांव के संस्कृत विद्यालय में दाखिला लिया। छोटा भाई वारिस भी वहीं पढ़ा। बगरू में संस्कृत स्कूल गांव की मस्जिद के बगल में है और इसमें कई मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं।
गांव में धर्म को लेकर नहीं कोई भेद-भाव
आसिटेंट प्रोफेसर फिरोज बताते हैं, गांव में धर्म से कोई फर्क नहीं पड़ता था। यह कॉलेज में भी कोई मायने नहीं रखता था। मुझे धर्म के कारण कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा।

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