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वाराणसी

जानिए चाय बेचने वाला कैसे बन गया सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री

चाय के ठेले से लेकर पीएम की कुर्सी तक का सफर

वाराणसीSep 17, 2016 / 10:22 am

sarveshwari Mishra

वाराणसी. देश में राजनीति के धनी पीएम मोदी से कोई अपरिचित नहीं है। वर्तमान में सबसे चर्चित व्यक्ति नरेन्द्र मोदी का 67 साल के हो गए। लेकिन सच में यह एक ऐसे लीडर हैं जिनके सामने सारी मुसीबतें कमजोर पड़ जाती है। यह उनका व्यक्तित्व ही है जिसके कारण आज वह भारत के प्रधानमंत्री है और विश्व की निगाहें उन पर टिकी हुई है। गुजरात के मेहसाणा में जन्में पीएम मोदी अपने छ: भाई-बहनों में तीसरे नम्बर के थे।




बचपन से ही कूट कूट कर भरी थी देश भक्ति 
पीएम मोदी ने अपने जीवन की शुरूआत अपने भाई के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय बेचकर की। चाय की दुकान संभालने के साथ साथ मोदी पढ़ाई लिखाई का भी पूरा ध्यान रखते थे। मोदी को पढ़ने का बहुत शौक था। वे अक्सर अपने स्कूल के पुस्तकालय में घंटों बिता दिया करते थे। उनके सहपाठी और शिक्षक बताते हैं कि मोदी शुरू से ही एक कुशल वक्ता थे और उनमें नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। वे नाटकों और भाषणों में जमकर हिस्सा लेते थे। नरेंद्र को खेलों में भी बहुत दिलचस्पी थी। मोदी हिन्दू और मुस्लिम दोनों के त्योहार बराबर उत्साह से मनाते थे। मोदी बचपन से ही बहुत बहादुर थे। एक बार वे एक मगर के बच्चे को हाथ में उठाकर घर ले आए थे।
बचपन से ही मोदी में देश भक्ति कूट कूट कर भरी थी। 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान मोदी रेलवे स्टेशन पर जवानों से भरी ट्रेन में उनके लिए खाना और चाय लेकर जाते थे। 1965 में भारत पाक युद्ध के दौरान भी मोदी ने जवानों की खूब सेवा की। 

इसी चाय के सफर ने उन्हें एक दिन राजनीति के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। मोदी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत आरएसएस के प्रचारक के तौर पर की। नागपुर में शुरुआती प्रशिक्षण लेने के बाद मोदी को भाजपा की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की गुजरात यूनिट की कमान सौंपी गई।

Narendra modi





























1987 में थामा भाजपा का हाथ
1987 में नरेंद्र मोदी ने भाजपा ज्वाइन की। एक प्रभावशाली संगठनकर्ता के रूप में उन्होंने रणनीति बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाई, जो गुजरात में बीजेपी की जीत के लिए निर्णायक साबित हुई। इस वक्त तक गुजरात बीजेपी में शंकरसिंह वाघेला और केशुभाई पटेल बड़े नेता के तौर पर स्थापित थे। 



2001 में बने गुजरात के सीएम
2001 में केशुभाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बनाए गए। क्योंकि केशुभाई सरकार का प्रशासन नाकाम साबित हो रहा था। उस वक्त कई नेता मोदी की काबिलियत और नेतृत्व को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त नजर नहीं आए थे।



2002 विधानसभा चुनाव में दुबारा की थी जीत हासिल 
2002 में भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के राजनेता के व्यक्तित्व को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण था। फरवरी 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के भीषण सांप्रदायिक दंगों में हजारों लोगों की नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गई। 
मोदी सरकार पर आरोप लगा कि उनका प्रशासन मूकदर्शक बना रहा और दंगों की आग पर काबू पाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए। यहां तक कि प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भी मोदी को ‘राजधर्म’ का पालन करने की नसीहत दी। इस वक्त अपने विरोध को बढ़ते देखकर बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उसके बाद हुए असेंबली चुनाव में फिर से मोदी ने स्पष्ट बहुमत के साथ जीत हासिल की।


मोदी ने न केवल सीएम के रूप में अपना टर्म पूरा किया बल्कि जीत की हैट्रिक लगा दी। बाद के लगातार दो असेंबली चुनावों में भी बहुमत हासिल कर लिया। मोदी की कट्टर हिंदुत्ववादी छवि और जीत हासिल करने की क्षमता का ही असर था कि बीजेपी में उनका कद बढ़ता चला गया। यही नहीं अपने राजनीतिक विरोधियों को भी मोदी ने बारी-बारी से हाशिए पर पहुंचाने में कामयाबी मिली। मोदी ने विकास में विकास का ऐसा मॉडल पेश किया गुजरात का ‘विकास मॉडल’ देश ही नहीं दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया। कॉरपोरेट जगत और इंडस्ट्री द्वारा मोदी सरकार का गुणगान, गुजरात में लाखों करोड़ रुपए का निवेश होने और प्रशासन को कुशल मैनेजर की तरह चलाने की मोदी की काबिलियत का बीजेपी ने जमकर बखान किया, लेकिन उनके साम्प्रदायिकता का चेहरा भी उनके साथ-साथ चलता रहा। 



2013 में चुनाव प्रचार समिति के बने चेयरमैंन
2013 जुलाई में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति का चेयरमैन नियुक्त किया, जिसके साथ ही उनका अगले चुनाव के लिए पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का रास्ता साफ हो गया। वरिष्ठ पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी के कड़े विरोध को दरकिनार करते हुए 13 सितंबर 2013 को बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को आखिरकार 2014 के आम चुनाव के लिए अपना प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट घोषित कर दिया। इसी के साथ यह पार्टी में मोदी के उदय और आडवाणी के राजनीतिक अवसान की उद्घोषणा बन गई।

मोदी के सफलता के राज 
नरेन्द्र मोदी की सफलता का सबसे बड़ा राज यही है कि वह बहुत ज्यादा मेहनत करते है। चुनाव के समय वह केवल 3-4 घंटे ही सोते थे एंव प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह 18 घंटे कार्य करते है। मेहनत से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है एंव सफलता के सारे रास्ते खुल जाते है। यह मोदी की मेहनत ही है जिसके कारण एक चाय बेचने वाला आज भारत का प्रधानमंत्री है। वह मुसीबतों से नहीं डरते और हमेशा प्रेरित एंव उत्साहित रहते है। आत्मविश्वास वहीँ होता है जहाँ किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं होता।




व्यवहारकुशल व वाणी के धनी हैं मोदी
मोदी की व्यवहारकुशल और कुशल वाणी के धनी हैं। मोदी जब जनता के सामने बोलते हैं तो वे जनता की बात करते हैं और तेज आवाज से बोलते हैं एंव वे जब विदेशों के प्रमुखों के साथ बातचीत करते हैं तो बड़े आराम एंव शांतिपूर्ण तरीके के साथ बातचीत करते हैं। मोदी जहां भी जाते हैं वहां के हो जाते हैं। मोदी जहां भी जाते है वहां के हो जाते हैं।




सकारात्मक एंव आशावादी
मोदी सकारात्मक सोच रखते है एंव आशावादी बनने की सलाह देते है। वे एक गुरु की तरह बात करते है एंव दूसरों को प्रेरित करते रहते है। वे कार्य को सकारात्मक रूप से शुरू करते है एंव उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा देते है। मोदी आलोचनाओं की परवाह नहीं करते एंव आलोचनाओं को मुंह तोड़ जवाब देते है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपने सांसदों को सलाह दी की फालतू के विवादों में न पड़ें एंव प्रत्येक आलोचना का जवाब न दें।

Pm modi


मोदी को पीएम बनाने में काशी का योगदान
नरेंद्र मोदी आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के पीएम उम्मीदवार बन गए हैं। एक समय था जब गोधरा कांड के बाद मोदी का राजनीतिक करियर दांव पर लग गया था। उसके बाद मोदी ने अपनी सोच, कार्यशैली और राजनीतिक रणनीति में बदलाव किया और विकास पुरुष बन गए। 



2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लडऩे वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काशी ने जिताकर संसद में भेजा। लेकिन उसी काशी नगरी के पिछले एक साल के जमाखाते में फिलहाल घोषित योजनाओं की लंबी फेहरिस्त भर है। मोदी जैसे प्रभावशाली प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार के सभी प्रमुख मंत्रालयों ने एक साल में अपना पिटारा खोल दिया है, लेकिन सपनों और उम्मीदों के अलावा जमीन पर अभी तक कुछ खास नहीं उतरा है।


गुजरात के भाग्यविधाता बन गए। आज पूरे देश की नजरें मोदी पर टिकी हैं, विरोधी और समर्थक सबकी दिलचस्पी मोदी में है।

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