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वाराणसी

देव दीपावली पर आकर्षण का केंद्र बनी मां अन्नपूर्णा की मूर्ति

Dev Deepawali Statue of Ma Annapurna Center Of Attraction for Devotees- देव दीपावली पर इस बार मां अन्नपूर्णा की मूर्ति आकर्षण का केंद्र होगी। इस साल काशी के 84 घाटों पर अर्धचंद्राकार स्वरूप में सजे दीपक की रोशनी से देवताओं का जहां विश्वनाथ की धरती पर स्वागत किया जायेगा, तो वहीं दूसरी ओर इन दीयों की रोशनी में मां अन्नपूर्णा के भी दर्शन कर सकेंगे।

वाराणसीNov 19, 2021 / 01:57 am

Karishma Lalwani

Dev Deepawali Statue of Ma Annapurna Center Of Attraction for Devotees

Dev Deepawali Statue of Ma Annapurna Center Of Attraction for Devotees

वाराणसी. Dev Deepawali Statue of Ma Annapurna Center Of Attraction for Devotees. देव दीपावली पर इस बार मां अन्नपूर्णा की मूर्ति आकर्षण का केंद्र होगी। इस साल काशी के 84 घाटों पर अर्धचंद्राकार स्वरूप में सजे दीपक की रोशनी से देवताओं का जहां विश्वनाथ की धरती पर स्वागत किया जायेगा, तो वहीं दूसरी ओर इन दीयों की रोशनी में मां अन्नपूर्णा के भी दर्शन कर सकेंगे। वाराणसी के मानसरोवर घाट पर मां अन्नपूर्णा का कटआउट लगा है। भक्तों को देव दीपावली पर अन्नपूर्णा के कटआउट के दर्शन हो सकेंगे। कटआउट को लगाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि लोग अपने 108 साल पुरानी परंपरा संस्कृति को समझें और आसानी से घाट पर मां गंगा के साथ-साथ मां अन्नपूर्णा का भी दर्शन कर सकें।
मानसरोवर घाट पर कटआउट

गौरतलब है कि वाराणसी के विभिन्न घाटों को अलग-अलग तरीको से सजाया गया है। वहीं मानसरोवर घाट पर मां अन्नपूर्णा का 32 फीट ऊंचा एक भव्य कटआउट लगाया गया है, जो बेहद खूबसूरत और आकर्षक है। इस दौरान हजारों रंग बिरंगी लाइटों से चमकते काशी के घाट पर मौजूद मां अन्नपूर्णा का स्वरूप लोगों की आस्था का केंद्र होगा। बता दें कि देव दीपावली प्रारंभ समय 18 नवंबर दोपहर 12 बजे से शुक्रवार 19 नवंबर दोपहर 2.26 बजे तक है।
108 साल पुरानी है मूर्ति

गंगा घाट पर पांच दीपों से शुरू हुई देव दीपावली गुरुवार को 15 लाख दीयों तक पहुंच गई। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महापर्व में शामिल होकर इसके भव्यता को और बढ़ाया था और इस बार इस पर्व पर तमाम आयोजनों के साथ-साथ मां अन्नपूर्णा का यह भव्य प्रतिरूप आस्था को और बढ़ा रहा है। दरअसल, 18वीं शताब्दी की ये प्रतिमा 1913 में काशी के एक घाट से चुरा ली गई थी, और फिर इसे कनाडा ले जाया गया। प्राचीन प्रतिमा कनाडा कैसे पहुंची, यह राज आज भी बरकरार है। बीते दिनों यह मूर्ति वाराणसी लाई गई।

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