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शाजापुर के इस अस्पताल में अनेक मर्ज के विशेषज्ञ नहीं

चिकित्सकों की कमी से बिगड़ रही अस्पताल की तबीयत, मरीज बेहाल6 में से महज एक शिशु रोग विशेषज्ञ पदस्थ

उज्जैनAug 05, 2019 / 02:13 am

rajesh jarwal

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चिकित्सकों की कमी से बिगड़ रही अस्पताल की तबीयत, मरीज बेहाल
6 में से महज एक शिशु रोग विशेषज्ञ पदस्थ

शाजापुर. स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे खराब स्थिति इन दिनों सुविधाओं से ज्यादा चिकित्सकों की कमी को लेकर हो रही है। सरकारी अस्पताल में अनेकों योजनाओं के बावजूद प्रथम श्रेणी विशेषज्ञ और द्वितीय श्रेणी चिकित्सा अधिकारी की कमी के चलते मरीजों को या तो प्रायवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है या सरकारी अस्पतालों में फजीहत होना पड़ता है। ऐसे में कुछ चिकित्सक अवकाश पर जाने से स्थिति और बिगड़ जाती है।
जिला अस्पताल के साथ ही जिले के सामुदायिक केंद्रों पर भी विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को भारी परेशानी उठाना पड़ती है। मरीजों को जिला अस्पताल रेफर किया जाता है। यहां प्रथम श्रेणी चिकित्सकों की कमी के चलते इन मरीजों को इंदौर-उज्जैन रैफर किया जाता है। शाजापुर जिला अस्पताल में चिकित्सकों के आधे से भी कम पद भरे हुए हैं। यहां प्रथम श्रेणी विशेषज्ञों में कुल स्वीकृत 2७ में से 1९ पद खाली है। केवल 8 ही प्रथम श्रेणी चिकित्सक कार्यरत है। वहीं अस्पताल में द्वितीय श्रेणी चिकित्सकों में 10 पद रिक्त हैं। कुल स्वीकृत पदों में आधे से ज्यादा पद खाली है। इससे मरीजों के साथ-साथ कार्यरत चिकित्सकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
मरीजों की बढ़ रही संख्या, चिकित्सक वहीं
जिला मुख्यालय पर स्थित जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में हमेशा से ही स्टाफ की कमी रही है। कभी-भी यहां पर स्वीकृत सभी पूरे नहीं भरे गए। वर्तमान में यहां पर प्रथम श्रेणी चिकित्सक, द्वितीय श्रेणी के कई पद रिक्त पड़े हुए हैं। पर्याप्त स्टाफ नहीं होने से यहां पर जो पदस्थ स्टाफ है उसे ज्यादा परेशानी होती है, क्योंकि हर दिन अस्पताल की ओपीडी भी बढ़ती जा रही है। जिससे कम कर्मचारियों पर ज्यादा बोझ पड़ जाता है। वहीं अस्पताल में आए दिन कोई न कोई डॉक्टर अवकाश पर रहता है, जिससे परेशानी और भी ज्यादा बढ़ हो जाती है।
इन की ज्यादा फजीहत
जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों में महिला मरीजों की ज्यादा फजीहत होती है। यहां रेडियोलॉजिस्ट विशेषज्ञ नहीं होने से सोनोग्राफी के लंबे समय इंतजार करना पड़ता है। अस्पताल के डॉक्टर को ट्रेनिंग कराकर सोनोग्राफी कराई जाती है। साथ ही नाक, कान, गले और दंत मरीजों के लिए तो अस्पताल में कोई चिकित्सक ही नहीं है। साथ ही दंत रोग विशेषज्ञ, क्षय रोग विशेषज्ञ, अस्थी रोग विशेषज्ञ आदि के पद खाली हैं। ऐसे में इस मर्ज के लोगों को या तो प्रायवेट अस्तपाल का जाना पड़ता है, इंदौर-उज्जैन का रुख करना पड़ता है।
इस तरह है स्वीकृत और रिक्त पद
प्रथम श्रेणी पदनाम स्वीकृत कार्यरत रिक्त
नाक, कान, गला विशेषज्ञ 101
शिशु रोग विशेषज्ञ 6 1 5
स्त्री रोग विशेषज्ञ 3 1 2
सर्जिकल विशेषज्ञ 321
मेडिकल विशेषज्ञ 3 1 2
नेत्र रोग विशेषज्ञ 1 1 0
रेडियोलॉजिस्ट विशेषज्ञ 1 0 1
निश्चेतना विशेषज्ञ 3 १ २
पैथोलॉजिस्ट विशेषज्ञ 1 1 0
अस्थी रोग विशेषज्ञ 2 0 2
क्षय रोग विशेषज्ञ 101
दंत रोग विशेषज्ञ 202
द्वितीय श्रेणी चि. अधिकारी १९ ९ १०
कुल ४६ १७ २९
&स्टाफ की कमी के बारे में प्रदेश शासन को लिखा है। अभी जो स्टाफ है उससे ही काम लिया जा रहा है। इसमें परेशानी आती है। मौजूद चिकित्सकों को मरीजों के देखने के अलावा अन्य कार्य भी सौंपे है। लगातार ओपीडी में भी मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कम चिकित्सक होने के बावजूद बेहतर सेवा देने का प्रयास किया जाता है। कुछ कठिनाई जरूर आती है। डॉ. एसडी जायसवाल,
सिविल सर्जन

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