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इस शहर की रक्षा के लिए चारों ओर विराजित हैं नाग देवता

मान्यता: भगवान शिव ने महाकाल वन में की थी नाग देवताओं की स्थापना

उज्जैनAug 05, 2019 / 01:40 am

rishi jaiswal

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उज्जैन. बाबा महाकाल की नगरी अवंतिका में नागपंचमी का पर्व 5 अगस्त को धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने अवंतिका की रक्षा के लिए महाकाल वन में चारों दिशाओं में बड़ों के रूप में नाग देवताओं की नियुक्ति की थी। नागपंचमी पर्व पर प्रस्तुत है पत्रिका की विशेष रिपोर्ट।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार सृष्टि की रचना के समय अवंतिका क्षेत्र का महाकाल से ज्योतिर्लिंग के रूप में संबंध होना तथा शिव का ज्योति स्वरूप में प्रकट होना, इस स्थान की सुरक्षा के लिए चार दिशा पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, चार कोण ईशान, अग्नि, नैऋत्य, वायव्य तथा पाताल लोक इन दसों दिशाओं के आदित्य स्वरूप 10 नामों की स्थापना बतौर कार्यभार गुणों के रूप में प्रदान की गई थी। समयांतर पर यह सारे स्वरूप गणों के रूप में विभिन्न दिशाओं व स्थानों पर हमारे समक्ष प्रतिष्ठित हैं।
नागों को नहीं पिलाना चाहिए दूध
नागपंचमी के दिन नाग पूजा बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ की जाती है। धर्म भाव से यह लोकमान्यता बन चुकी है कि नागपंचमी के दिन नाग को दूध पिलाना बहुत शुभ फल देता है। सर्प विशेषज्ञ मुकेश इंगले के अनुसार स्वाभाविक रूप से नाग मांसाहारी है, उसके अंदर ऐसे ही भोजन को पचाने की शक्ति होती है, इसलिए नागपंचमी पर पिलाए जाने वाला दूध नाग जाति के जीवन के लिए संकट खड़ा कर देता है।
नाग पंचमी का महत्व
सावन शुक्ल की पंचमी तिथि को नागपंचमी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार प्रकोप के कारण नाग लोक जलने लगा, तब नागों की पीड़ा इसी दिन शांत हुई थी। पूर्वकाल में जन्मेजय द्वारा नागों को नष्ट करने के लिए किए जा रहे यज्ञ से जब नाग जाति के समाप्त होने का संकट उत्पन्न हो गया, तो श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ही तपस्वी जरत्कारू के पुत्र आस्तिक मुनि ने उनकी रक्षा की थी।
कालसर्प दोष निवारण पूजा का इन स्थानों पर महत्व
नागपंचमी पर श्रद्धालुओं द्वारा बड़ी संख्या में कालसर्प दोष निवारण पूजा का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार उज्जैन तीर्थ क्षेत्र में रामघाट और सिद्धवट इसके लिए खास स्थान माने जाते हैं।
रामघाट पर नागों का स्थान है और सिद्धवट पर कार्य सिद्धि होने का वरदान है। यहां प्रेतशिला और शक्तिभेद तीर्थ हैं। रामघाट पर पिशाचमोचन सहित 24 संगम तीर्थ स्थान भी है। शास्त्रों में अलग-अलग तीर्थ नदियों के संगम का उल्लेख मिलता है इसलिए उज्जैन में ये दो तीर्थ स्थान ऐसे हैं, जहां पितृ दोष ओर कालसर्प दोष निवारण की पूजा का विशेष महत्व है।

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