यह बात ब्रह्मकुमारी शिवानी बहन ने मोहनलाल सुखाडि़या यूनिवर्सिटी के स्वामी विवेकानंद सभागार में न्यूरोथियोलॉजी पर हुए सम्मेलन में मुख्यवक्ता के रूप में व्यक्त कही। उन्होंने कहा कि अपने संस्कारों को अच्छा बनाने के लिए हमें विज्ञान और आध्यात्म की शक्ति को अपनाते अपनी लाइफ स्टाइल को भी बदलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत के पास आध्यात्म रूपी अपनी साइंस है। हमारा फोकस आंतरिक शक्ति होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों पर दबाव कम करने से कई परेशानियां आती है। बचपन में दबाव झेलने वाला व्यक्ति जीवन के अन्य दबाव को आसानी से झेल जाता है। आजकल के बच्चे ट्रेस, डिप्रेशन, एंजाइटी आदि शब्दों का उपयोग करने लगे हैं। क्योंकि उन्होंने कभी दबाव झेला ही नहीं। थोड़ा सा दबाव पड़ते ही वे इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि अचिवमेंट से अधिक महत्व अच्छे संस्कारवान को मिलना चाहिए। जबकि हो इसका उलट रहा है। प्रथम स्थान पर आने वाले बच्चे को सबसे अधिक चिंता रहती है, क्योंकि उसे उस स्थान पर बने रहना होता है। भारतीय गुरुकुल परंपरा के समय अच्छे संस्कारों को अधिक महत्व दिया जाता था। उन्होंने कहा कि पहले अपने संस्कारों पर काम किया जाए। संस्कार बदल लें, संसार अपने आप बदल जाएगा।
मोबाइल ने सब लतों को पीछे छोड़ा बीके शिवानी ने कहा कि पूरे विश्व के लोगों को मोबाइल की लत लग गई है। इस लत ने अन्य सभी लतों को पीछे छोड़ दिया है। इससे पूरी दिनचर्या ही प्रभावित हो गई है। व्यक्ति को हद से हद रात 10 बजे तक सो जाना चाहिए। सुबह 4 से 5 बजे के बीच ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। जबकि कई बच्चे ब्रह्ममुहूर्त में सोते हैं।
भगवान का प्रसाद मानकर बनाए भोजन उन्होंने कहा कि भारत में कहावत है जैसा अन्न-वैसा मन यह व्यावहारिक ज्ञान में भी चरितार्थ होती है। आप मन मार कर पौधों की सार संभाल करोगे तो उन पर भी विपरित असर होगा। भोजन घर में बनना चाहिए और परमात्मा की याद में प्रसाद स्वरूप बनना चाहिए। इससे पॉजीटिव एनर्जी आएगी। कोई भी वस्तु प्रकृति संरक्षण के लिए जितनी आवश्यकता हो उतना ही खरीदें।