दोपहर १२:०५ बजे डायलेसिस कक्ष का दरवाजा बंद था। पत्रिका टीम ने अंदर प्रवेश किया तो तीन मशीनों पर तीन मरीज डायलेसिस करवा रहे थे। कक्ष में एक सिस्टर, एक प्रभारी और एक कर्मचारी बैठा था। लेकिन एक मशीन दिखाई नहीं दे रही थी। अपेक्स कंपनी इस कार्य को कर रही है। प्रभारी डायलेसिस टेक्निशियन सचेंद्र तिवारी ने बताया कि जिला अस्पताल में डायलेसिस का शुभारंभ दो मशीनों के साथ वर्ष २०१६ में हुआ था। फिर दो मशीने वर्ष २०२१ में दी गई थी। चार मशीनों ने डायलेसिस किया जाने लगा। एक मशीन छह महीने पहले सतना भेज दी गई। उनका कहना था कि प्रतिदिन पांच और छह मरीज आ रहे है। एक दिन में छह लोगों का डायलेसिस किया जाता है और जिले में ऐसे १७ मरीज है।
दोपहर १२:१३ बजे पत्रिका पुरुष सर्जिकल वार्ड में पहुंची। जहां के पलंगों पर बेड रखे थे, लेकिन उनमें बेडसीट नहीं थी और कंबल दिखाई नहीं दे रहे थे। यही हाल दूसरे वार्डों का भी था। मरीज और उनके परिजनों ने बताया कि ठंड का असर रात की जगह दिन में दिखाई देने लगा है। घर और ऑफिस में रहने वाले लोग गर्म कपड़ों का उपयोग करने लगे है।