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त्रेता युग में मिलता है इस शनि पर्वत का उल्लेख, यहां है सबसे प्राचीन शनिदेव का मंदिर

मध्यप्रदेश के मुरैना के शनि मंदिर की बात यहां खास हो चली है। दरअसल यहां स्थित मंदिर शनि देव का सबसे प्राचीनतम मंदिर माना गया है। आज इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लगी हुई है। इस मंदिर के बारे में ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि यहां शनिदेव की जो प्रतिमा है वह आसमान से गिरे उल्का पिंड से बनी हुई है। ऐसे ही और भी इंट्रेस्टिंग और मिस्टिरियस फैक्ट्स जानने के लिए जरूर पढ़ें ये आर्टिकल…

Jan 21, 2023 / 01:14 pm

Sanjana Kumar

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21 जनवरी को कई संयोग एक साथ बन रहे हैं. साल की पहली शनिश्चरी अमावस्या के साथ आज मौनी अमावस्या भी है। आज शनिवार सुबह 6 बजकर 16 मिनट से 22 जनवरी की सुबह 2 बजकर 21 मिनट तक शनि अमावस्या रहेगी। इस दिन शनि भगवान की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। ऐसे में शनि मंदिरों की चर्चा न हो ऐसा कैसे हो सकता है। इसलिए मध्यप्रदेश के मुरैना के शनि मंदिर की बात यहां खास हो चली है। दरअसल यहां स्थित मंदिर शनि देव का सबसे प्राचीनतम मंदिर माना गया है। आज इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लगी हुई है। इस मंदिर के बारे में ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि यहां शनिदेव की जो प्रतिमा है वह आसमान से गिरे उल्का पिंड से बनी हुई है। ऐसे ही और भी इंट्रेस्टिंग और मिस्टिरियस फैक्ट्स जानने के लिए जरूर पढ़ें ये आर्टिकल…

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– ज्योतिषियों की मानें तो शनिचरा पहाड़ी का निर्माण आसमान से टूटकर गिरे उल्का पिण्ड से हुआ था।

– शनिदेव से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा के अनुसार लंका दहन के लिए शनिदेव ने बताया था, जब तक वह लंका में रहेंगे तब तक लंका दहन नहीं होगी। वह इतने दुर्बल हैं कि चलकर लंका से बाहर खुद जा ही नहीं सकते। तब हनुमान जी ने अपनी बुद्धि से शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था। कहते हैं हनुमान ने शनिदेव को पूरी ताकत से भारत भूमि की ओर फेंका था, तब वह मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के पास पर्वत पर जा गिरे और इसीलिए इसे शनि पर्वत कहा जाता है।

– शास्त्रों की मानें तो शनि पर्वत पर शनिदेव ने घोर तपस्या की थी और तब जाकर बल प्राप्त किया था।

– शनि पर्वत का उल्लेेख त्रेता युग से ही मिलता है।

– इतिहास बताता है कि यहां स्थापित शनिदेव की मूर्ति और उनके सामने हनुमान प्रतिमा की स्थापना चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य ने की थी। यानी हम कह सकते हैं इस पर्वत पर मंदिर का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था।

– बाद में शनि देव की महिमा एवं चमत्कारों से प्रभावित होकर ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा दौलतराव सिंधिया ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर में लगे एक शिलालेख के अनुसार 1808 ई. में जीर्णोद्धार करवाया गया।

– शनि पर्वत या शनिश्चरा पहाड़ी निर्जन वन में होने से विशेष प्रभावशाली है।

– यह भी माना जाता है कि शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित शिला इसी शनिश्चरा पहाड़ी से ही ले जाई गई थी।

– शनि मंदिर के पास ही पौड़ी वाले हनुमान जी की जमीन पर लेटी हुई व उभरी हुई प्रतिमा है।

– इस पूरी पहाड़ी और इसके आसपास के क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र माना जाता है।

– कई भक्त दावा करते हैं कि उन्होंने यहां कुछ विशेष अनुभव पाए हैं।

– मंदिर में एक छोटा सा पौराणिक पवित्र जल कुंड है, जिसे गुप्त गंगा धारा के नाम से जाना जाता है।

– इसकी विशेषता है कि यह कभी खाली नहीं होता। इसे हमेशा जल से भरा हुआ ही देखा गया है। ऐसा तब है, जब यह मंदिर एक बीहड़ क्षेत्र में बसा है। ऐसे में यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।

– यहां की गुफाओं में संतों के तपस्या करने के दावे भी अक्सर सामने आते रहे हैं।

– मंदिर में शनि महाराज की प्रतिमा तांत्रिक रूप में तपस्या लीन भेष-भूषा में हैं, जिसके अंतर्गत यह प्रतीमा यग्योपवीत, हृदय मे नीलमणि, रुद्राक्ष माला, एक हाथ में सुमिरनी तथा दूसरे हाथ में दंड धारण किए हुए है।

– 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के सिगनापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला को इसी शनि पर्वत से ले जाकर प्रतिष्ठित किया गया था।

– यह मंदिर तांत्रिक गतिविधियों के अनुसार अत्यंत सिद्ध मंदिर है।

– शनि जयंती पर मंदिर में विशाल मेला लगता है।

– इस मेले में हजारों लाखों भक्त हिस्सा लेते हैं।
– मंदिर दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा की भी यहां विशेष महिमा मानी गई है।

– वैसे तो यह मंदिर मुरैना जिले में स्थित है, लेकिन ग्वालियर के पास होने से भक्त इसे ग्वालियर के शनि मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

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