skanda sashti 2025: नए साल की पहली स्कंद षष्ठी आज, जानें दक्षिण में कार्तिकेय के प्रमुख मंदिरों की कहानी
skanda sashti 2025: नए साल की पहली स्कंद षष्ठी 5 जनवरी 2025 को है। इस दिन भक्त संतान प्राप्ति और उसके कल्याण के लिए प्रथम पूज्य गणेश के भाई शिव पुत्र कार्तिकेय की पूजा करेंगे और व्रत रखेंगे। इनके प्रमुख मंदिर दक्षिण भारत में है, क्या आपको मालूम है इसकी कहानी। आइये जानते हैं …
स्कंद षष्ठी 2025 किस दिन है: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक चंद्र मास शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसलिए भक्त हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखते हैं। सबसे बड़ा आयोजन तमिलनाडु में होता है यहां श्रद्धालु छह दिन सूरसम्हाराम तक व्रत रखते हैं। सूरसम्हाराम के बाद अगले दिन तिरु कल्याणम मनाया जाता है। इसके अगले माह की स्कंद षष्ठी सुब्रह्मण्यम षष्ठी या कुक्के सुब्रह्मण्यम् षष्ठी के नाम से जानी जाती है।
इधर, पौष माह की स्कंद षष्ठी तिथि की शुरुआत 4 जनवरी रात 10 बजे से हो रही है और यह तिथि 5 जनवरी को रात 8.15 बजे तक रहेगी। उदया तिथि में पौष शुक्ल पक्ष षष्ठी रविवार 5 जनवरी को मानी जाएगी। इसलिए इस दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाएगा। इन भगवान कार्तिकेय के 6 प्रमुख मंदिर , मुरुगन के 6 धाम हैं, आइये बताते हैं ये धाम कौन से हैं और दक्षिण में क्यों अधिक होती है कार्तिकेय की पूजा …
कार्तिकेय के प्रमुख धाम
1. पलनी मुरुगन मंदिर (कोयंबटूर से 100 किमी पूर्वी-दक्षिण में स्थित) 2. स्वामीमलई मुरुगन मंदिर (कुंभकोणम के पास) 3. तिरुत्तनी मुरुगन मंदिर (चेन्नई से 84 किमी दूर) 4. पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मंदिर (मदुरई से 10 किमी उत्तर में स्थित)
5. श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम, तिरुचेंदुर (तूतुकुड़ी से 40 किमी दक्षिण में स्थित) 6. तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मंदिर (मदुरई से 10 किमी दक्षिण में स्थित) 7. मरुदमलै मुरुगन मंदिर (कोयंबतूर का उपनगर) एक और प्रमुख तीर्थस्थान हैं।
8. कर्नाटक के मंगलौर शहर के पास कुक्के सुब्रमण्या मंदिर भी भगवान मुरुगन के भक्तों का प्रिय तीर्थ स्थान है, लेकिन मरुदमलै मुरुगन मंदिर समेत ये दोनों मंदिर भगवान मुरुगन के छह निवास स्थान का हिस्सा नहीं हैं।
रूठकर दक्षिण गए कार्तिकेय (Significance of Skanda Sashti)
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन समय की बात है, राक्षस तारकासुर ने घोर तपकर भगवान सदाशिव को प्रसन्न किया और अमर होने की लालसा से वैरागी भगवान सदाशिव से शिव पुत्र के हाथों ही मौत का वरदान मांगा। इसी घटना चक्र के परिणाम स्वरूप सदाशिव और इनकी शक्ति पार्वती से भगवान स्कंद का जन्म हुआ। बाद में कार्तिकेय देव सेनापति बने और तारकासुर के गंतव्य का माध्यम बने। बाद में माता पार्वती ने गणेशजी को प्रकट किया।
कालांतर में घटनाचक्र ऐसा घूमा कि एक दिन महर्षि नारद भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन के लिए पहुंचे और उन्हें ज्ञानफलम उपहार में दिया। भगवान शिव ने इसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय में से किसी एक को देने का निर्णय लिया और कहा कि जो भी सृष्टि की परिक्रमा सबसे पहले करेगा, उसे यह फल मिलेगा। इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन मोर से परिक्रमा के लिए निकल गए, वहीं गणेशजी ने कहा कि उनके लिए सारा संसार माता पिता हैं तो उन्होंने शिव पार्वती की परिक्रमा पूरी कर ली।
भगवान शिव ने यह फल गणेशजी को दे दिया, लेकिन कार्तिकेय इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुए और कैलाश छोड़कर तमिलनाडु में पलनी के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे। यहां ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान माने जाते हैं। यहां स्कंद का मंदिर, पलनी दण्डायुधपाणि उनके प्रमुख धाम में से एक माना जाता है।
तिरुत्तनी मंदिर
भगवान कार्तिकेय के 6 धाम में से एक तिरुत्तनी तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में थिरुट्टानी पहाड़ी पर है। इस मंदिर को अरुपदैवेदु कहा जाता है। मंदिर का विमान सोने से ढंका हुआ है और यहां तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां पार करनी होती है जो साल के 365 दिन का संकेत हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार देव राज इंद्र ने अपनी बेटी देवयानी का विवाह स्कंद से किया था और उपहार में अपना ऐरावत हाथी दे दिया। इससे इंद्र का ऐश्वर्य क्षय होने लगा। इस पर भगवान सुब्रह्मण्य ने ऐरावत को वापस करने की सोची लेकिन इंद्र ने इनकार कर दिया। हालांकि कहा कि हाथी को उनके सामने खड़ा किए रहें। इसी कारण मंदिर में हाथी का मुंह पूर्व दिशा में रखा गया है।
संत अरुणगिरिनाथर का कहना है कि थिरुत्तनी की पहाड़ी देवताओं द्वारा पूजा के लिए चुनी गई जगह है। इस पहाड़ी को दुनिया की आत्मा और शिवलोक जितना पवित्र माना जाता है।