जबकि प्राइवेट हॉस्पीटल में उपचार कराने वाले लोगों का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। आवारा श्वानों की नसबंदी पर कानूनी अड़चन होने के कारण जिला प्रशासन और नगर परिषद प्रशासन ने नसबंदी योजना की फाइल को खोलना उचित नहीं समझा।
वहीं आवारा श्वानों की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस साल के छह माह में ही दस हजार से अधिक लोग आवारा श्वानों के काटने से घायल हो चुके है। करीब डेढ़ दशक से आवारा श्वानों की नसबंदी कराने की योजना के लिए नगर परिषद प्रशासन की ओर से सिफज़् चचाज़् ही हुई।
परिषद बोडज़् की बैठक में पाषज़्दों के प्रस्तावों पर नसबंदी कराने के लिए एक एनजीओ को अधिकृत भी किया लेकिन यह योजना सिरे नहीं चढ़ पाई। पिछले साल तत्कलीन आयुक्त प्रियंका बुडानिया ने इस योजना को शुरू करने के लिए बजट का भी प्रावधान रखा लेकिन कानूनी अड़चन से यह योजना फिर अटक गई।
शहर के 65 वाडोज़् में आवारा श्वानों की संख्या लगतार बढ़ रही है। हर वाडज़् में औसतन दस आवारा श्वान की संख्या लगाई जाएं तो यह आंकड़ा साढ़े छह हजार बनता है।
इसे रोकने के लिए अफसरों ने चुप्पी साध ली है। यही कारण है कि आवारा श्वानों से निजात दिलाने के लिए पाषज़्दों की शिकायतों पर भी कारज़्वाई नहीं होती। वाडज़् 54 के पाषज़्द लोकेश स्याग का कहना है कि अशोकनगर बी और छजगिरिया मोहल्ले में आवारा श्वानों की समस्या अधिक है। इन श्वानों के काटने की कई बार घटनाएं हो चुकी है।
लेकिन कानूनी अड़चन बताकर नगर परिषद प्रशासन कारज़्वाई नहीं कर रहा है। ज्ञात रहे कि पिछले साल सूरतगढ़ क्षेत्र उदयपुर गोदरान गांव की सूयज़् गौशाला में हिंसक श्वानों के बार बार हमले के कारण वहां कई गौवंश की मृत्यु हो गई थी, इस गौशाला में निगरानी के लिए वहां तैनात चौकीदार आवारा श्वानों के हमले से तंग आकर नौकरी छोड़कर चला गया था।
वहीं दो साल पहले यहां पुरानी आबादी वाडज़् 10 में पूवज़् पाषज़्द नीतू माटा के बच्चे पर दो श्वानों ने हमला कर दिया था। इस घटना के बाद माटा ने इलाके में लगातार बढ़ रही श्वानों की संख्या से निजात दिलाने की गुहार की थी। लेकिन नगर परिषद ने कारज़्वाई नहीं की।
दरअसल, सुप्रीम कोटज़् का आदेश है कि आवारा कुत्तों को पकड़कर रखना या उसे नुकसान पहुंचाना अपराध है। आवारा श्वानों की नसबंदी के बाद उसी स्थान पर छोडऩा अनिवायज़् है, जहां से उसे पकड़ा था।
वहीं पशु क्रूरता करने पर भी पुलिस संबंधित व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कारज़्वाई कर सकती है। पिछले साल ब्लॉक एरिया के एक पाषज़्द के खिलाफ कोतवाली मं श्वान को पीटने के आरोप में मोहल्लेवासियों की शिकायत पर एफआईआर दजज़् हुई थी।
वहीं वैलकम विहार कॉलोनी में आवारा श्वानों पर अत्याचार करने की शिकायतो को लेकर लोगों ने वीडियो वायरल किए थे। इन घटनाओं के बाद नगर परिषद प्रशासन बैकफुट पर आ गया था।
इस बीच, डॉग बाइट के शिकार मामले में हमारा जिला श्रीगंगानगर पूरे बीकानेर संभाग में टॉप पर है।
हर साल बीस हजार से अधिक डॉग बाइट की घटनाएं होती है। जबकि बीकानेर, चूरू और हनुमानगढ़ में यह आंकड़ा कम है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक वषज़् 2019 में करीब 22 हजार डॉग बाइट के मामले आए थे।
वहीं वषज़् 2020 में कोरोना के कारण लॉक डाउन होने के बावजूद 20 हजार 300 लोग डॉग बाइट के शिकार हुए। इस साल एक जनवरी से लेकर 30 जून तक 10 हजार 286 लोग डॉग बाइट के शिकार हुए है।