#MeToo Rajasthan : महिला डॉक्टर बोली- अस्पताल में साथी डॉक्टर ने मेरे साथ यह सब किया
सुनने में भले ही अजीब हो। लेकिन यह कोई रील कहानी नहीं। बल्कि रियल स्टोरी है। इस कहानी में सीकर शहर की दो नंबर डिस्पेंसरी के पास बने मंदिर में यह श्वान पिछले नौ साल से नियमित संध्या कालिन आरती में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आ रही है। हालांकि इस दौरान इसके मुंह से निकाली जाने वाली ध्वनी को कोई समझ नहीं पाता है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि यह अपनी भाषा में प्रभु को याद करती है। बानगी यह है कि इसके कानों में मंदिर आरती की घंटी की आवाज कानों में सुनाई पड़ते ही यह सीधी मंदिर परिसर में खींची चली आती है। गजब की बात यह है कि इसकी नियमितता को देखकर स्वयं पुजारी ने इसका अलग आसन परिसर में तैयार कर रखा है। जिस पर आकर यह बैठती है और आरती पूरी होने के बाद उठकर चली जाती है।
चाव से खाती प्रसाद
मंदिर के पुजारी गोपाल के अनुसार इसकी आदत ओरों के लिए नियमितता का सबक बनी हुई है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु पवन शर्मा का कहना है कि आरती के बाद इसके लिए अलग से प्रसाद निकाल कर रखा जाता है। जिसे यह बड़े चाव से खाती है। इसके अलावा मंदिर में होने वाले धार्मिक आयोजन व सवामणी में इसका अलग से प्रसाद तैयार किया जाता है।
समय की पाबंद
मंदिर परिसर के पास रहने वाले परशराम माथुर व बुजुर्ग सत्यनारायण सिंह ने बताया कि यह श्वान समय की भी बड़ी पाबंद है। मंदिर में आरती शुरू होने के बाद यह जहां कहीं भी हो। एक मिनट के भीतर पहुंच जाती है और आरती के बाद एक मिनट भी यहां ठहरती नहीं है। भाग-दौड़ के जीवन में इंसान मंदिर-देवरों को भले ही भूलते जा रहे हैं। लेकिन, इसका रोजाना यहां आना किसी चमत्कार से कम भी नहीं है।
इनका कहना है…
जानवरों में विशेष तौर पर बंदर और श्वान में अनुकरण करने की प्रवृति होती है। ऐसे में यह संभव होता है कि कई पशु लोगों को देखकर भी ऐसी आदत पकड़ लेता है। जो आमजन के लिए कौतुहल का विषय बन जाता है।
-अरविंद महला, वरिष्ठ समाज शास्त्री, आर्टस कॉलेज कटराथल सीकर