चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर परिजन सोचते हैं कि घर से बाहर जाकर धूम्रपान करने से परिवार के बच्चे पैसिव स्मोकिंग से बचे रहेंगे लेकिन हकीकत यह है कि धूम्रपान करने वाले अभिभावकों के घरों में सांस लेने वाली हवा में खतरनाक स्तर का निकोटीन पाया जाता है। निकोटीन के ये नुकसानदेह तत्व कपड़ों और अन्य सामान में भी चिपके रहते हैं। जिससे पूरा वातावरण ही प्रभावित हो जाता है। जिससे कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों को नुकसान ज्यादा होता है।
राजस्थान टोबैको फ्री एलायंस की ओर से किए सर्वे के अनुसार राजस्थान में 24.7 फीसदी लोग तबाकू उपभोग करते हैं यानि हर चौथा व्यक्ति तबाकू खाता है। जिसके कारण सांस सबधी रोग तेजी से बढ़ते हैं। यही कारण है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज तेजी से बढ़ रही है। सीकर जिले में रोजाना होने वाली मौत का एक प्रमुख कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज होता है।
स्मोकिंग जितनी ही खतरनाक होती है पैसिव स्मोकिंग
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार रोजाना 20 से 30 बच्चे गुटखा, पान, मसाला सहित तंबाकू उत्पाद की शुरुआत करते है। प्रदेश में प्रतिदिन 300 नए बच्चे तंबाकू जनित उत्पादों का पहली बार उपयोग शुरू करते है। दो साल तक हुए सर्वे के अनुसार सीकर में तबाकू उत्पादों पर रोजाना दो करोड़ 39 लाख 95 हजार 550 रुपए हर माह 72 करोड़ और एक साल में 876 करोड़ खर्च किए जाते हैं। इसके सेवन से फेफड़े के कैंसर से लेकर दमा, मुंह का कैंसर व खांसी रोग आदि हो रहे हैैं।यह बात सही है कि तबाकू सेवन की प्रवृत्ति दो से तीन प्रतिशत तक बढ़ी है। अस्पताल में रोजाना आठ से दस मरीज इस प्रकार के आतेहैं। डॉ.रामचन्द्र लाबा, वरिष्ठ विशेषज्ञ मनोचिकित्सा एवं प्रभारी टबैको कंट्रोल प्रदेश में दो साल तक लगातार किए गए सर्वे के बाद तैयार रिपोर्ट के आंकड़े भयावह है। प्रदेश सरकार का तबाकू मुक्त राजस्थान अभियान सफलता तभी होगा जब नए तबाकू उपभोगकर्ताओं में कमी आए। राजन चौधरी, कार्यकर्ता