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सतना

ऐसी है हकीकत: तिल-तिल मरते शहर के तालाब, किसी में उग आई कॉलोनी तो कोई बन गया कचरा दान

10 साल से बन रही सजाने-संवारने की योजना, आज भी कायाकल्प का इंतजार

सतनाFeb 18, 2019 / 02:35 pm

suresh mishra

kyo ho rahi talabo ki maut kaise bante hai talab

kyo ho rahi talabo ki maut kaise bante hai talab

सतना। विंध्य की औद्योगिक नगरी से स्मार्ट सिटी बनने तक का सफर शहर तय कर चुका है। लेकिन, शहर की धरोहर जलाशयों को संवारने की न पहले किसी ने रुचि ली और न आज कोई ध्यान देर रहा है। शहर की परिधि में एक-दो नहीं सात तालाब और दो तलैया हैं। ये सभी निगम प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते तिल-तिल मरने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि शहर स्थित सरोवरों को संवारने की आवाज नहीं उठी।
बीते 10 वर्ष में निगम प्रशासन की ओर से शहर के छह तालाबों को संरक्षित कर उन्हें संवारने की योजना कई बार बनी पर निगम अधिकारियों की लापरवाही के कारण तालाबों के संरक्षण की योजना एक दशक बीतने के बाद भी जमीन पर नहीं उतर पाई। कभी शहर को पानीदार बनाने वाले तालाब अब निगम प्रशासन की उपेक्षा के चलते विलुप्त होने की कगार पर हैं। किसी तालाब में कॉलोनी उग आई है तो कोई कचरादान बन कर रहा गया है। तिल-तिल मर रहे शहर के सरोवर निगम प्रशासन से अस्तित्व बचाने की गुहार लगा रहे हैं।
2012 में बना था संरक्षण का प्लान
शहर के जलाशयों को सरंक्षित कर उन्हें पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित करने वर्ष 2012 में नगर निगम द्वारा तालाब संरक्षण का प्रोजेक्ट पास किया गया था। तत्कालीन महापौर पुष्कर सिंह तोमर की पहल पर निगम इंजीनियरों ने शहर के छह प्रमुख तालाबों का सीमांकन कर उनके सौंदर्यीकरण की फाइल तैयार की थी। लेकिन, अतिक्रमण की भेंट चढ़ते जा रहे तालाबों के सीमांकन में राजस्व विभाग द्वारा अपेक्षित सहयोग न मिलने से छह तालाबों के कायाकल्प की फाइल आज भी नगर निगम में धूल खा रही है।
100 एकड़ में फैले ताल अब 20 एकड़ में सिमटे
शहर के जलाशयों की चिंता करने वाले लोगों का कहना है कि चाहे सिंधी कैम्प तालाब हो या जगतदेव तालाब, धवारी तालाब हो या बंजरहा तालाब, 20 साल पहले तक इनकी परिधि 15 एकड़ से अधिक थी। लेकिन, जिला एवं निगम प्रशासन तालाबों के संरक्षण को लेकर कभी गंभीर नहीं दिखा।
भू-माफिया की नजर

परिणाम यह रहे कि शहर विकास के साथ भू-माफिया की नजर जलाशयों पर पड़ी और वे राजस्व अमले के साथ मिलीभगत कर शहर के तालाब ही बेच डाले। यही कारण है कि दो दशक पूर्व 100 एकड़ जमीन में फैले शहर के सरोवर अब 20 एकड़ में सीमित होकर रह गए हैं। जमीन कारोबारियों की नजर आज भी जलाशयों की जमीन हड़पने पर लगी है।
इन तालाबों का होना था कायाकल्प
दो करोड़ की लागत से शहर के जिन तालाबों के कायाकल्प का प्रस्ताव पास किया गया था उनमें नारायण तालाब, जगतदेव तालाब, धवारी तालाब, सिंधी कैम्प तालाब, अमौंधा तालाब तथा बंजरहा तालाब शामिल हैं।
शहर में सरोवर
जगतदेव तालाब, धवारी तालाब, नारायण तालाब, अमौंधा तालाब, बंजरहा तालाब, संतोषी माता तालाब, सिंधी कैम्प तालाब, व्यंकटेश्वर मंदिर तालाब, नई बस्ती तलइया

तालाब की सुरक्षा और संरक्षा निगम प्रशासन ही नहीं हर नागरिक की जिम्मेदारी है। शहर के छह तालाबों को संरक्षित करने व सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव दो साल से पास है पर निगम प्रशासन की लापरवाही से कायाकल्प अधर में लटका है। एमआइसी में मैंने तालाबों का सीमांकन कराकर सौंदर्यीकरण शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
ममता पाण्डेय, महापौर

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