(लेखक महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिडिय़ाघर एवं सफारी के संचालक संजय रायखेड़े हैं।)
मोहन की मौत के दिन रीवा में राजकीय शोक घोषित किया गया था। बांधवगद्दी के राजसी ध्वज में पार्थिव शरीर ढंका गया। बंदूकें झुकाकर सलामी दी गई। पुलुआ के अनुसार उस दिन महाराजा मार्तण्ड सिंह ने कहा था कि आज हमने अपनी बहुमूल्य धरोहर खो दी है। मौत के कई घंटे तक महाराजा एकांत में रहे। कई दिनों तक शोक सभाएं हुईं।
मोहन और उसके वंशज सफेद बाघों ने कई अवसरों पर रीवा सहित पूरे विंध्य का गौरव बढ़ाया है। दुनिया में जहां भी सफेद बाघ हैं, उनके वंशजों की चर्चा होगी तो इस क्षेत्र का नाम जरूर लिया जाएगा।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी नाम की सफेद बाघिन को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जाया गया। व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत किया गया। 1987 में डाक टिकट
डाक और दूरसंचार विभाग ने 1987 में डाक टिकट जारी किया। इसमें मोहन की फोटो लगाई गई।
देश में जानवरों का पहली बार बीमा सफेद बाघ मोहन का ही हुआ था। चार दशक बाद फिर दहाड़
रीवा से दुनिया भर में भेजे गए बाघों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन आखिरी बाघ के रूप में 8 जुलाई 1976 को विराट नाम के बाघ की मौत के बाद सफेद बाघों के बिना ही जंगल रहे। सतना और रीवा जिले की सीमा पर स्थित मांद रिजर्व क्षेत्र मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी बनाई गई, यहां पर भोपाल के वन विहार से 9 नवंबर 2015 को सफेद बाघिन विंध्या लाई गई। वर्तमान में मुकुंदपुर सफारी और चिडिय़ाघर में सफेद बाघों का दो जोड़ा है। साथ ही तीन यलो टाइगर के साथ ही एक जोड़ा लायन भी है। व्हाइट टाइगर सफारी को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी अब मुकुंदपुर पहुंचने लगे हैं।
रीवा की धरती से सफेद शेर मोहन के वंशज दुनिया के कई देशों में भेजे गए। जहां भी सफेद शेर हैं वे कहीं न कहीं मोहन के वंशज ही हैं। रीवा से सफेद शेर अमेरिका, जापान, इंग्लैण्ड, युगोस्लाविया, हंगरी, अफ्रीका के कई देशों सहित अन्य स्थानों पर भेजे गए थे।
– क्षेत्रफल- चिडिय़ाघर 75 हेक्टेयर, सफारी 25 हे.
– मांद के जंगल में 100 हे. में टाइगर सफारी ये वन्यजीव मौजूद
– सफेद बाघ- 4
– रायल बंगाल टाइगर-3
– लायन-2, तेंदुए-4
– भालू तीन
– आठ सांभर
– 13 काले हिरण
– चीतल 30
– तीन नीलगाय
– 6 थामिन डियर