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इस पत्र में कहा गया है कि कोविड-19 कोरोना वायरस ने पूरी दुनियां को पूरी तरह लॉडाउन करने को विवश कर दिया है। इस महामारी की रोकथाम के लिए सबसे सरल इलाज लॉकडाउन है। इसी बीच रमज़ान का पवित्र महिना भी आ रहा है। लिहाजा, हमें इस पवित्र महीने में लॉकडाउन के तरीक़े को मानते हुए रमज़ान के रोज़े और इबादत करनी है। हमें किसी को यह मौक़ा नहीं देना है कि कोई हम पर उंगली उठाए। दारुल उलूम देवबन्द ने मुसलमानों से अपील की है कि वह 24 अप्रैल को चांद देखने की कोशिश करें, क्योंकि शब-ए-बरात के चांद दिखाई देने पर आम सहमति नहीं बन पाई थी। इसलिए रमज़ान के चांद की तलाश 23 अप्रैल को भी करें, क्योंकि अगर शब-ए-बरात के चांद को लेकर आम राय नहीं वाले दुरुस्त हुए तो फिर चांद एक दिन पहले दिखाई दे सकता है।
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रमज़ान के महीने के दौरान सभी मुसलमान रोज़ों का ख़ास तरीक़े से अमल करें और अगर किसी मुसलमान को बीमारी की वजह से रोज़ा न रखना पड़े तो वह किसी मुफ्ती से मालूम कर उस पर अमल करें। मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने को लेकर पहले से दी गई सलाहों पर ही अमल जारी रहेगा। इमाम मुअज्जिन के अलावा चार से पांच लोगों को तय कर लिया जाए। उनके अलावा अन्य कोई मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की ज़िद न करें। यही हमारे और हमारे परिवार की बेहतरी के लिए ठीक है। इस पर अमल करना चाहिए, जिन लोगों के मस्जिद में नमाज़ अदा करने के नाम तय कर दिए गए हैं। वही हज़रात नमाज़-ए-तरावीह भी अदा करेंगे। इनके अलावा कोई भी नहीं। बाक़ी मुसलमान अपने-अपने घरों में नमाज़ अदा करें और तरावीह की नमाज भी अपने घरों में ही अदा करने का इंतज़ाम करें। उसमें अपने परिवार के सदस्य के साथ मिलकर नमाज़ और तरावीह अदा करें और अगर जमात की शक्ल न बने तो अकेले भी अदा की जा सकती हैं। हाफ़िज़ न मिलने की सूरत में सूरह तरावीह अदा करें।
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तरावीह को कम दिनों में यानी जल्दी ख़त्म न किया जाए एक पारा या सवा पारे के हिसाब से पढ़ा जाए, ताकि पूरे महीने तरावीह की नमाज़ अदा होती रहे। मस्जिदों के क़रीब रहने वाले या किसी बिल्डिंग में हाफ़िज़ का इंतज़ाम कर माईक के ज़रिए घरों में नमाज़-ए-तरावीह अदा न की जाए, जिन इलाक़ों में क़दीम या जदीद (नई पुरानी) जंतरी (कैलंडरों) से ख़त्म-ए-सहर हो दोनों को लेकर आम सहमती नहीं है और जंतरी के हिसाब से होता है तो वहां पुरानी जंतरी के हिसाब से किया जाए तथा फ़जर की अजान दस मिनट पहले की जाए। मस्जिदों में इफ़्तार का प्रबंध भी न किया जाए और इस तरह का कोई आयोजन अपने निजी तौर पर भी न किया जाए।
रमज़ान के महीने में जिस तरीक़े से हम लोगों को सहर और इफ़्तार की जानकारी देते थे। उसी तरह दे कही सायरन बजने की व्यवस्था है तो कही घंटी बजाकर तथा माइक से लोगों को ख़त्म-ए-सहर और इफ़्तार की सूचना दी जाती हैं, वह जारी रहेंगी। वहीं, दारुल उलूम देवबन्द ने लोगों से यह भी अपील की है कि ख़त्म-ए-सहर में बार-बार जानकारी देने से परहेज़ किया जाए, क्योंकि इससे लोगों की निजी ज़िंदगी में ख़लल पड़ता है, जो ठीक नहीं है। इबादत करने वालों को और घरों में मरीज़ों को भी दिक़्क़त होती हैं। इस लिए ऐसा न किया जाए। बस एक बार ही ऐलान किया जाए।
रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में अपने-अपने घरों में रहकर व्यक्तिगत ही इबादत करें। मस्जिदों या किसी के मकान में जमा न हों। लॉकडाउन के चलते खाने-पीने के सामान की ख़रीदारी प्रशासन की ओर से जारी सुझावों के आधार पर ही करें और अगर खाने पीने के सामान में कोई परेशानी हो तों सब्र से काम लें। वैसे प्रशासन यह कोशिश करेगा कि आम जनता को कोई दिक़्क़त न हो, लेकिन फिर भी अगर परेशानी हो तो हमें सब्र से काम लेना है। रमज़ान के महीने में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करें। मोबाइल पर टाईम बर्बाद न करें। इस महीने की फ़ज़ीलत को देखते हुए हमें अपने गुनाहों से माफ़ी मांगनी चाहिए और देश व दुनियां में इस महामारी समेत सभी दूसरी परेशानियों से बचाने की अल्लाह से दुआएं करें। अपने बच्चों को घरों में रहने की न सिर्फ नसीहत दें, बल्कि बिना वजह कभी भी बाहर न जाने दें।
दारुल उलूम देवबन्द ने अपने पत्र में बहुत ही विस्तार से लोगों को समझाया है। उलेमा ने उम्मीद जताई है कि इसका बहुत ही सकारात्मक संदेश जाएगा। इसके साथ ही कहा गया है कि जब-जब देश-दुनियां में परेशानी आई है तो दारुल उलूम देवबन्द ने हमेशा अपना फ़र्ज़ निभाया है।