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दमोह में भक्तों ने की अगवानी
इसके एक दिन पहले गुरुवार की अल सुबह से अपने गुरु की अगवानी के लिए भक्तों में उत्साह देखा गया। सुबह ६ बजे से ही हजारों की संख्या में महिला, पुरुष, बच्चे, बूढ़े, युवा दमोह से विसनाखेड़ी तिराहे के लिए निकले। इधर आचार्य संघ का विहार भी दमोह की ओर शुरू हो चुका था। सुबह साढ़े ७ बजे जैसे ही आचार्यश्री मारूताल से निकलते हैं, दमोह में उत्सव शुरू हो जाता है। एक घंटे में ही आचार्य विद्यासागर ससंघ दमोह शहर में प्रवेश करते हैं। जहां बड़ी संख्या में भक्तगण गुरु की अगवानी करते हंै। यहां अल्प विश्राम के साथ आचार्यश्री का संघ आगे विहार करता है।
आचार्यश्री के दमोह पहुंचने के पहले अटकलों का दौर जारी था। संभावनाएं थीं कि आचार्यश्री की आहारचर्या मारूताल या जबलपुर नाके पर हो सकती है। जानकारी यह भी आती है, कि गुरुवर सीधे सागर नाका जाएंगे, लेकिन गुरु कब किस और रुख कर जाएं यह किसी को नहीं पता होता है। विहार के दौरान भी ऐसा ही देखने मिला। पॉलीटेक्निक कॉलेज से विहार करते हुए जब जबलपुर नाके पहुंचे तो आगे चल रहे भक्त सागर नाके की ओर चलने लगे, लेकिन आचार्यश्री अचानक से चौराहे से मुड़ गए और रास्ता बदल लिया। ऐसा ही कुछ नजारा कीर्तिस्तंभ चौराहे पर भी देखने मिला। जब आचार्यश्री की अगवानी के लिए दूसरा रूट कीर्तिस्तंभ से घंटाघर होते हुए धर्मशाला माना जा रहा था, लेकिन यहां भी अचानक आचार्यश्री मुड़े और सीधे पुराना थाना होते हुए जैन धर्मशाला पहुंचे। इस दौरान गुरु की महिमा की लोग चर्चा करते नजर आए।
आचार्यश्री के ससंघ जैन धर्मशाला नन्हें मंदिर पहुंचते ही हजारों की संख्या में भक्तगण परिसर में एकत्रित हो गए। जिसे जहां जगह मिली रुक गया। सभी बस गुरु की एक झलक के लिए बेताव नजर आए। यहां भी आचार्यश्री मंच को छोड़कर कक्ष की बालकनी से भक्तों से रूबरू हुए। जहां सबसे पहले भक्तों ने सामूहिक रूप से आचार्य विद्यासागर का पूजन किया। इसके बाद आरती हुई। इस दौरान गुरु के जयकारों से पूरा परिसर गुंजायमान रहा। इसके बाद आचार्यश्री के संक्षिप्त प्रवचन हुए।
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