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राजघराने में संतान की कामना के लिए रानीतालाब और उद्यान की हुई थी स्थापना

पत्रिका-विरासत————–
– सिरमौर में 200 वर्षों से लगातार की जा रही है पूजा, यहां की राज्य की खुशहाली के लिए महारानी ने भी किया था श्रमदान

रीवाOct 18, 2020 / 11:01 am

Mrigendra Singh

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Ranitalab mandir sirmaur history, rewa mp

रीवा। जिले के सिरमौर में स्थित रानीतालाब और उससे लगे बाग की स्थापना अब से करीब 200 वर्ष पहले हुई थी। उस दौर में इसे पर्यावरणीय और आध्यात्मिक रूप से विकसित किए जाने की प्रमुख वजह यह बताई जाती है कि राज्य की सुख-समृद्धि की कामना के लिए राजघराने की ओर से इसे बनवाया गया था। तब से लेकर अब तक यह धार्मिक विरासत के रूप में काम कर रहा है।
प्रचलित किस्से के अनुसार रीवा राज्य के महाराजा विश्वनाथ सिंह के विवाह के बाद कई वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई थी। इस कारण महारानी सुभद्रा कुंवरि ने पूजा-पाठ शुरू कराया था। इसी दौरान उन्हें पता चला कि सिरमौर के जंगल में दांडी ऋषि का आश्रम है, वह कोई उपाय बता सकते हैं। महारानी ने ऋषि को संदेश भिजवाया लेकिन उन्होंने कुछ समय बाद आने की बात कही। इस पर महारानी स्वयं सिरमौर के जंगल में ऋषि के आश्रम गई हैं और उन्होंने राज्य की खुशहाली और वंशवृद्धि के लिए उपाय सुझाने के लिए कहा। ऋषि ने राज्य के कई हिस्सों में तालाब, उद्यान, मंदिर, गौशाला आदि की स्थापना की बात कही।
इस पर महारानी ने सबसे पहले सिरमौर में ही इसकी स्थापना के आदेश दिए। स्थानीय बुजुर्ग मुन्नालाल सोनी बताते हैं कि महारानी ने करीब १२ एकड़ की भूमि पर भव्य तालाब निर्मित कराया। साथ ही विजय राघव मंदिर का भी निर्माण कराया। उस दौरान महारानी ने स्वयं श्रमदान किया था। तालाब से लगे करीब पांच एकड़ के क्षेत्रफल में उद्यान की स्थापना की गई थी, जहां फलदार पौधे लगाए गए थे। महारानी के कहने पर ही तत्कालीन महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव ने इस मंदिर के रखरखाव के लिए 180 एकड़ भूमि भी दे दी थी। कहा जाता है कि इसकी स्थापना के कुछ ही समय बाद सन 1823 में महारानी ने राजकुमार रघुराज सिंह को जन्म दिया।
इस जन्म के बाद सिरमौर के विजय राघव मंदिर में बड़ा यज्ञ कराया गया था, जहां पर देश के कई राज्यों के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया था। महाराजा एवं महारानी भी राजकुमार को लेकर वहां पहुंचे थे। उस दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को बड़ी मात्रा में जेबर, अनाज एवं द्रव्य बांटा गया था। तालाब के बीच मंदिर और उसके चारों ओर छतरियां आकर्षण का केन्द्र हैं। इस विरासत को पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित करने की मांग लंबे समय से की जा रही है।
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सिरमौर से प्रेरणा लेकर कई जगह मंदिर बनवाए
सरमौर में रानीतालाब और मंदिर की स्थापना के बाद महारानी ने रीवा राज्य के कई हिस्सों में इस तरह के तालाब और मंदिरों का निर्माण कराया था। माना जाता है कि उस दौर में अध्यात्म और पर्यावरण संरक्षण को लेकर यह बड़ा कदम था। राज्य के कई हिस्सों में तालाब बनवाए गए जो आज भी मौजूद हैं। रघुराज सिंह रीवा के महाराजा बने तो उन्होंने भी इस तरह के अध्यात्मिक केन्द्रों की स्थापना कराई।
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विरासत को कायाकल्प और संरक्षण का इंतजार
सिरमौर में रानीतालाब के बीच बनाए गए मंदिर और उसके चारों ओर बनी छतरियों के संरक्षण और कायाकल्प की जरूरत है। साथ ही मंदिर से लगी भूमि के स्वामित्व को लेकर भी विवाद बढऩे लगा है। कोर्ट में इसके मामले चल रहे हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सर्वेश सोनी ने मुख्यमंत्री एवं मुख्यसचिव के पास मांग पत्र सौंपते हुए इसके संरक्षण की योजना बनाने के लिए मांग उठाई है। कुछ समय पहले प्रशासन की ओर से इसके संरक्षण के लिए प्रयास शुरू किए गए थे लेकिन अधिकारियों के बदलते ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

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