इसके बाद चौपड़ शुरू हुआ और तीन बार खेले गए चौपड़ में संयोग से माता पार्वती जीत गईं। लेकिन खेल संपन्न होने के बाद पुतले ने महादेव को विजयी बता दिया। इस पर आदिशक्ति नाराज हो गईं, उन्होंने बालक को दिव्यांग होने और कीचड़ में पड़ रहने का शाप दे दिया। इस पर बालक माफी मांगने लगा, उसने कहा-मैंने द्वेषवश ऐसा नहीं किया, अज्ञानता के कारण यह गलती की है। इस पर माता ने कहा-यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आती हैं, उनसे गणेश पूजन विधि पूछकर व्रत रखना। ऐसा करने पर तुम मेरी शरण में आ जाओगे। यह कहकर माता कैलाश चली गईं।
एक वर्ष बाद इस स्थान पर नाग कन्याएं आईं और बालक ने उनसे संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि पूछकर 21 दिन लगातार व्रत और पूजन किया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उससे मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। इस पर उसने कहा कि हे गणेशजी मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि अपने पैरों पर चलकर माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं, और वे यह देखकर प्रसन्न हो सकें। बालक को वरदान देकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उसके बाद बालक कैलाश पहुंचा और शिवजी को पूरी कथा सुनाई।
इधर, चौपड़ वाली घटना के बाद से माता पार्वती भगवान से विमुख हो गईं थीं। बालक के घटना बताने के बाद भगवान शिव ने भी 21 दिन तक श्रीगणेश के लिए व्रत किया। इससे माता के मन में शिव के प्रति नाराजगी खत्म हुई। इसके बाद यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। इस बीच माता के मन में भगवान कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई, तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्रीगणेश का व्रत किया।