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उदयातिथि में सप्तमी और स्वामीजी की जयंतीः मंगलवार 21 जनवरी 2025
स्वामी विवेकानंद के गुरु से पूछे 8 सवाल (Swami Vivekanand Questions)
Swami Vivekanand Jayanti: 1893 की शिकागो की विश्व धर्म संसद सभी के जेहन में होगी, जब स्वामी जी ने अरसे बाद एक बार फिर दुनिया को भारत की आध्यात्मिकता की पहचान कराई। इससे पहले नरेंद्र दत्त के विवेकानंद बनने की यात्रा लंबी रही। जो अपने विचारों के कारण आज भी भारत और दुनिया में याद किए जाते हैं।ऐसे में स्वामीजी की जयंती पर आज याद करते हैं स्वामी विवेकानंद और गुरु रामकृष्ण परमहंस के संवाद को, जिसमें विवेकानंद के तर्क की जिज्ञासा को गुरु रामकृष्ण शांत करते हैं।
पहला प्रश्न
स्वामी विवेकानंद: मैं समय नहीं निकाल पाता हूं। जीवन आपाधापी से भरा हुआ लगता है।रामकृष्ण परमहंस: गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं लेकिन उत्पादकता स्वतंत्रता प्रदान करती है।
अर्थ: पृथ्वी पर भगवान ने सभी को एक समान ही समय दिया है, फिर वह राजा हो या रंक। दिन में 24 घंटे, हर घंटे में 60 मिनट, फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि हमारे पास समय नहीं है? दिनचर्या का सही प्रबंधन न होने से ही हमें यह कमी महसूस होती है। हमें अपनी दिनचर्या का अच्छे से प्रबंधन कर उसका उत्तम उपयोग करना चाहिए, क्योंकि बीता समय लौटकर नहीं आता है।
दूसरा प्रश्न
स्वामी विवेकानंद: लोगों की ऐसी कौन सी बात है जो आपको सबसे ज्यादा विचलित करती है?रामकृष्ण परमहंस: जब भी वे कष्ट में होते हैं तो ईश्वर से पूछते हैं, ‘मैं ही क्यों?’ किंतु जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, ‘मैं ही क्यों?’
अर्थ: इसके अनुसार सुख और दुख एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। मनुष्य सिर्फ सुख की अनुभूति करे यह संभव नहीं है और जो व्यक्ति इन दोनों से मुक्त हो जाता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है। इसलिए सांसारिक सुखों की आशा रखने वालों को दुःख का भी भागी बनना ही पड़ेगा।
तीसरा सवाल
स्वामी विवेकानंद: आज जीवन इतना जटिल सा क्यों हो गया है?रामकृष्ण परमहंस: जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो क्योंकि यह इसे और जटिल बना देता है। जीवन को केवल जियो।
अर्थ: व्यक्ति के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही है कि वह हमेशा दूसरों के जीवन से अपने जीवन की तुलना करता है। दूसरों के मुकाबले किसी चीज के ना पाने का दुःख हमेशा उसे सालता है, इसी में वह जीवन को नीरस व्यतीत करता रहता है। जबकि ऐसा करने से उसके भविष्य में होने वाले काम या तो सही से नहीं हो पाते या वह उसका पूरा आनंद नहीं उठा पाता।
चौथा सवाल
स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग हमेशा दुःख ही क्यों पाते हैं?रामकृष्ण परमहंस: हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है, सोने को शुद्ध होने के लिए अग्नि में तपना पड़ता है। उसी प्रकार से अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं। इससे मिले अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है।
अर्थ: यह पूर्णतया व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि वह जीवन की समस्याओं और चुनौतियों को किस रूप में लेता है। यदि वह बिना कठिनाई के ही आगे बढ़ता रहेगा तो अपने जीवन में कुछ भी नहीं सीख पाएगा।
इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि जीवन में सफलता पाने के लिए चुनौतियों के सामने हार मानने या उसे एक समस्या लेने की बजाए, उससे लड़े और उससे कुछ सीखने का प्रयत्न करें। हर कठिनाई या समस्या हमें जीवन का कुछ ना कुछ मूल्य सिखाकर ही जाती है।
पांचवां सवाल
स्वामी विवेकानंद: समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि हम किस ओर जा रहे हैं?रामकृष्ण परमहंस: अगर तुम अपने बाहर देखोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। इसलिए अपने भीतर झांको, आखें हमें दृष्टि देती हैं लेकिन हृदय मार्ग दिखाता है।
अर्थ: कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं कि हमें समझ नहीं आता है कि अब कौन सा फैसला लेना सही रहेगा और कौन सा नहीं। इस समय यदि हम गलत फैसला कर लें तो यह हमें असफल बना सकता है। हमेशा दिमाग से काम लेना भी उचित नहीं रहता है।
छठा सवाल
स्वामी विवेकानंद: कठिन समय में भी कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?रामकृष्ण परमहंस: हमेशा इस बात पर ध्यान रखो कि तुम अब तक कितना चल पाए बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो और जो प्राप्त न हो सका उसे नहीं।
अर्थ: जीवन में कठिन समय अवश्य आता है और यदि हम उसके सामने हार गए या थक गए तो हम आगे बढ़ ही नहीं पाएंगे। जीवन में कभी भी असफलता से नहीं डरना चाहिए क्योंकि सफलता और असफलता दोनों ही जीवन के अंग हैं।
सफलता जहां हमें किसी चीज की प्राप्ति कराती है तो वहीं असफलता हमें कुछ ना कुछ सिखाकर जाती है और साथ ही आगे भी प्रयास करते रहने की प्रेरणा देती है। यदि हम असफलता के डर से प्रयास करना ही छोड़ देंगे तो हम कभी भी अपने जीवन को सफल नहीं बना पाएंगे।
सातवां सवाल
स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थना व्यर्थ जा रही है।रामकृष्ण परमहंस: कोई भी प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती है। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को एक ओर रख दो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है। यह कोई समस्या नहीं है जिसे तुम्हें सुलझाना है। मेरा विश्वास करो, यदि तुम यह जान जाओगे कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।
अर्थ: जीवन में कुछ कठिनाई आने पर या किसी को खो देने पर हम अपने जीवन को व्यर्थ समझने लगते हैं, जो पूर्णतया गलत है। यह जीवन हमें विधाता ने दिया है और हर कोई यहां कुछ ना कुछ करके जाता है। हर किसी के जन्म लेने का उद्देश्य उसका इस संसार में कुछ योगदान देना होता है।
इसलिए बिना यह सोचे कि हमने अभी तक क्या पाया और क्या खोया, हमें इस बात का चिंतन करना चाहिए कि हम अभी क्या कर रहे हैं और उससे हमारा और दूसरों का क्या भला हो सकता है।
आठवां सवाल
स्वामी विवेकानंद: मैं अपने जीवन में सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं।रामकृष्ण परमहंस: बिना किसी अफसोस के अपने भूतकाल का सामना करो, पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो और निडर होकर भविष्य की तैयारी करो।
अर्थ: मनुष्य का ज्यादातर समय अपने भूतकाल में घटित हुई घटनाओं को सोचने में ही लग जाता है या भविष्य में उसके साथ कैसा होगा, यह सोचने में निकल जाता है। व्यक्ति को भूतकाल और भविष्यकाल का चिंतन करने की बजाय वर्तमान में वह क्या कर रहा है, इस पर ध्यान देना चाहिए।
भूतकाल में घटित हुई घटनाओं से शिक्षा लेकर और भविष्य की तैयारी करके मनुष्य को वर्तमान में कर्म करने चाहिए। साथ ही उससे मिलने वाले परिणामों की तैयारी भी उसे पहले ही कर लेनी चाहिए।
कुछ तथ्य (Swami Vivekanand Jayanti Fact)
– भारत सरकार 1985 से 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाती है।– स्वामी विवेकानंद आधुनिक हिंदू संत और हिंदू धर्म के वेदांत दर्शन के अनुयायी थे। वे संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे, उन्होंने बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।