आदिवासी समुदाय के मुताबिक सम्मेद शिखरजी से करीब चार किलोमीटर पूर्व की ओर संथाल आदिवासियों का पवित्र जुग जाहेरथान है. वहां बलि देने की भी परंपरा है. यहां दो बार झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) भी जा चुकी हैं। यहां शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन भी आ चुके हैं.
मकर संक्रांति पर आदिवासी करते हैं दर्शन
मकर संक्रांति पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहाड़ पर दर्शन के लिए आते हैं. उनका जैन समाज दही-चूड़ा देकर स्वागत करता है। पूजा के वक्त आदिवासी समाज के लोग यहां पेड़ लगाते हैं, यहां साल में एक बार आदिवासियों को शिकार करने का अधिकार भी मिला हुआ है।
क्या होता है जाहेरथान और जुग जाहेरथानः आदिवासियों के पूजा स्थल को जाहेरथान बोलते हैं, जहां आदिवासी अपने रीति रिवाजों के अनुसार पूजा करते हैं, इन स्थानों पर मेले लगते हैं।
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आदिवासियों के हर गांव और इलाके में जाहेरथान बने हुए हैं। संथाल आदिवासियों के सबसे बड़े देवता सिंगा बोगा (सूर्य) और दूसरे देवता मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) हैं। संथाल गांव के बीच चौकोर चबूतरे को मांझी स्थान कहते हैं। यहीं पितर पत्थर के टुकड़ों के रूप में प्रतीकात्मक रूप से स्थापित होते हैं। वहीं जाहेरथान गांव से थोड़ा हटकर साल या महुए के पेड़ के पास होता है। जहां संथाल जाति के प्रमुख देवी देवताओं का निवास माना जाता है।
संथाल आदिवासियों का मानना है कि व्यक्ति गांव परिवार की कुशलता के लिए बोंगा गुरु और हापड़ामको (पितरों) की दया की जरूरत होती है। इससे अकाल आदि भी नहीं आते। इन्हें प्रसन्न रखने के लिए इनकी आराधना करनी पड़ती है, बलि हड़िया या भोग चढ़ाना होता है।
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नंगे पांव जैन समाज पहुंचता है शिखर पर
जैन श्रद्धालुओं को सम्मेद शिखरजी तक जाने और आने के लिए 27 कि.मी का सफर तय करना पड़ता है। एक तरफ से 9 किमी चढ़ाई के बाद 9 किमी पहाड़ पर चलना पड़ता है, इसी पहाड़ी पर मंदिर बने हैं. इसके बाद लौटने के लिए 9 किमी का सफर तय करना पड़ता है और यह कठिन सफर नंगे पांव तय करते हैं। वहीं इसका परिक्रमा पथ 58 किलोमीटर है, जहां जैन श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं।
इसलिए सुर्खियों में है पारसनाथ पहाड़
बता दें कि पिछले दिनों सम्मेद शिखर पर्वत क्षेत्र (Parasnath pahad jharkhand) को पर्यटन स्थल घोषित करने के फैसले से जैन समाज आक्रोशित था और धरना प्रदर्शन कर रहा था, जिससे केंद्र सरकार ने फैसले को वापस ले लिया। जैन समाज को आशंका थी कि पारसनाथ पहाड़ यानी सम्मेद शिखरजी (Sammed Sikhar) को पर्यटन स्थल बनाए जाने से तीर्थ क्षेत्र की मर्यादा भंग होगी।