श्राद्ध केवल अपराह्न काल में ही करें। श्राद्ध में तीन वस्तुएं पवित्र हैं- दुहिता पुत्र, कुतपकाल (दिन का आठवां भाग) तथा काले तिल। श्राद्ध में तीन प्रशंसनीय बातें हैं- बाहर-भीतर की शुद्धि, क्रोध नहीं करना तथा जल्दबाजी नहीं करना। “पद्म पुराण” तथा “मनुस्मृति” के अनुसार श्राद्ध का दिखावा नहीं करें, उसे गुप्त रूप से एकांत में करें। धनी होने पर भी इसका विस्तार नही करें तथा भोजन के माध्यम से मित्रता, सामाजिक या व्यापारिक संबंध स्थापित न करें। श्राद्ध काल में श्रीमदभागवतगीता, पितृसूक्त, ऐन्द्रसूक्त, मधुमति सूक्त आदि का पाठ करना मन, बुद्धि एवं कर्म की शुद्धि के लिए फलप्रद है।
विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध के अवसर पर दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि को निमंत्रण देकर ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान देकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए। इस दिन पांच पत्तों पर अलग-अलग भोजन सामग्री रखकर पंचबलि करें ये हैं- गौ बलि, श्वान बलि, काक बलि, देवादि बलि तथा चींटियों के लिए। श्राद्ध में एक हाथ से पिंड तथा आहुति दें परन्तु तर्पण में दोनों हाथों से जल देना चाहिए।