गुरुवार व्रत (Guruvar Vrat)
सनातन धर्म में बहुत से लोग गुरुवार के दिन व्रत रखते हैं। इसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना भी करते हैं। इस दिन पीले वस्त्र और भोजन का महत्व बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही, घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। यह भी पढ़ेः उत्पन्ना एकादशी पर करें ये अचूक उपाय, पैसों की तंगी से मिलेगी राहत गुरुवार के दिन इस व्रत कथा के सुनने या पढ़ने से लोगों की घर-परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। गुरुवार का व्रत करने से बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में बृहस्पति के कमजोर होने के कारण विवाह की हर बाधा दूर होती है। इसके अलावा नौकरी में तरक्की के लिए भी यह व्रत बहुत प्रभावी माना जाता है।
गुरुवार व्रत कथा (Guruvar Vrat Katha)
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही निर्धन था। उस ब्राह्मण के कोई भी संतान नहीं थी। उसकी पत्नी बहुत ही मलीनता के साथ रहती थी । न तो वह स्नान करती थी औऱ न ही वह किसी देवता का पूजन करती थी। एस कारण ब्राह्मण देवता बहुत ही दुखी रहते थे।बेचारे बहुत कुच करते थे, लेकिन उसका परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की पत्नी के कन्या रुपी रत्न पैदा हुआ। ब्राह्मण की कन्या बड़ी होकर सुबह स्नान कर विष्णु भगवान का व्रत करने लगी। इसके साथ ही अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके विधालय जाती थी, तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ स्वर्ण के जो जाते लौटते समय उनको बीन कर घर ले आती थी। यह भी पढ़ेः क्यों मिला शनिदेव को अपने पिता से अधिक प्रतापी होने का वरदान, जानें पापों से मुक्ति दिलाने वाली कथा प्राचीन काल में एक बड़ी प्रतापी और दानी राजा राज करता था। वह स्वभाव से बहुत ही दानी और दयालु था। हमेशा धर्म- कर्म के मार्ग पर चलता था। लेकिन यह सब बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। ना वह व्रत करती और न ही दान-धर्म वह राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती थी। एक बार राजा शिकार खेलने वन को गए थे, रानी और दासी घर पर अकेली थी। तब बृहस्पति भगवान राजा के दरवाजे पर साधु के वेश में भिक्षा मांगने आए तो रानी कहने लगी हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे यह सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं मेरे पास करने को कोई कार्य न हो।
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