मन में पक्का इरादा हो तो क्या नहीं हो सकता
वह बच्ची शिक्षक के समक्ष कुछ नहीं बोल सकी और सारी कक्षा की हंसी उसके कानों में गूंजती रही। अगले दिन कक्षा में मास्टर जी आए तो दृढ़ संयमित स्वरों में उस लड़की ने कहा, ‘ठीक है, आज मैं अपाहिज हूं। चल-फिर नहीं सकती, लेकिन मास्टर जी, याद रखिए कि मन में पक्का इरादा हो तो क्या नहीं हो सकता। आज मेरे अपंग होने पर सब हंस रहे हैं, लेकिन यही अपंग लड़की एक दिन हवा में उड़कर दिखाएगी।
पक्के इरादे
उसकी बात सुनकर उसके साथियों ने फिर उसकी खिल्ली उड़ाई। लेकिन उस अपाहिज लड़की ने उस दिन के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह प्रतिदिन चलने का अभ्यास करने लगी। कुछ ही दिनों में वह अच्छी तरह चलने लगी और धीरे-धीरे दौड़ने भी लगी। उसकी इस कामयाबी ने उसके हौसले और भी बुलंद कर दिए। देखते ही देखते कुछ दिनों में वह एक अच्छी धावक बन गई। ओलिंपिक में उसने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया और एक साथ तीन स्वर्ण पदक जीतकर सबको चकित कर दिया। हवा से बात करने वाली वह अपंग लड़की थी अमेरिका के टेनेसी राज्य की ओलिंपिक धाविक विल्मा गोल्डीन रुडाल्फ, जिसने अपने पक्के इरादे के बलबूते पर न केवल सफलता हासिल की अपितु दुनियाभर में अपना नाम किया।