मोह ही कष्ट का सबसे प्रमुख कारण है- आचार्य श्रीराम शर्मा
कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है, ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल है। अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है। अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है। हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं, शब्द गौण है विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
मधुमक्खी की तरह केवल फूल पर ही बैठो और स्वादिष्ट शहद का ही रसपान करों- : रामकृष्ण परमहंस
अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है। हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमें बसेंगे। यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता। हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें। एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो– उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो।