“उत्कृष्टता” को ही स्थिरता और सफलता का श्रेय मिलता है
उत्कृष्टता का गौरव सदा से अक्षुण्ण रहा है। धूर्तता और धोखेबाजी कितनी ही बढ़ जाए, सज्जनों का मार्ग उनके कारण कितना ही कंटकाकीर्ण क्यों न हो जाए, फिर भी अंततः “उत्कृष्टता” को ही स्थिरता और सफलता का श्रेय मिलता है। परीक्षा में ऊंचे नंबरों से पास होने वाले छात्रों की हर क्षेत्र में मांग रहती है, जबकि घटिया श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर उनकी उन्नति सीमित हो जाती है।
थोड़ा करों मगर उत्कृष्ठ ही करों
जीवन” एक “परीक्षा” है, उसे “उत्कृष्टता” की कसौटी पर ही सर्वत्र कसा जाता है। यदि खरा साबित न हुआ जा सके तो समझना चाहिए कि प्रगति का द्वार अवरुद्ध ही है। इसलिए हमेशा अच्छे से अच्छा करने की कोशिश में हर किसी व्यक्ति को लगे रहना चाहिए। जीवन में जो कुछ भी करों, थोड़ा करों मगर उत्कृष्ठ ही करों।
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