scriptदृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस | Daily Thought Vichar Manthan : Ramkrishna Paramhans | Patrika News
धर्म और अध्यात्म

दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस

दृष्टिकोण भिन्न होने से सब कुछ बदल जाता है

Dec 04, 2019 / 05:25 pm

Shyam

दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस

दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस

जीवन का आनन्द किसी वस्तु या परिस्थिति में नहीं, बल्कि जीने वाले के दृष्टिकोण में है। स्वयं अपने आप में है। क्या हमको मिला है- उसमें नहीं, बल्कि कैसे हम उसे अनुभव करते हैं? किस तरह से उसे लेते हैं- उसमें है। यही वजह है कि एक ही वस्तु या परिस्थिति दो भिन्न दृष्टिकोण के व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ रखती है। एक को उसमें आनन्द की अनुभूति होती है- दूसरे को विषाद की।

 

कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है- स्वामी विवेकानंद

 

दक्षिणेश्वर के मन्दिर निर्माण के समय तीन श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। उधर से गुजर रहे श्री रामकृष्ण देव ने उनसे पूछा- क्या कर रहे हैं? एक बोला; अरे भई, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसके कहने में दुःख था और बोझ था। भला पत्थर तोड़ना आनन्द की बात कैसे हो सकती है। वह उत्तर देकर फिर बुझे हुए मन से पत्थर तोड़ने लगा। तभी श्री परमहंस देव की ओर देखते हुए दूसरे श्रमिक ने कहा, बाबा, यह तो रोजी-रोटी है। मैं तो बस अपनी आजीविका कमा रहा हूं। उसने जो कहा, वह भी ठीक बात थी। वह पहले मजदूर जितना दुःखी तो नहीं था, लेकिन आनन्द की कोई झलक उसकी आंखों में नहीं थी। बात भी सही है, आजीविका कमाना भी एक काम है, उसमें आनन्द की अनुभूति कैसे हो सकती है।

 

अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद

 

तीसरा श्रमिक यूं तो हाथों से पत्थर तोड़ रहा था, पर उसके होंठो पर गीत के स्वर फूट रहे थे- ‘मन भजलो आमार काली पद नील कमले’। उसने गीत को रोककर परमहंस देव को उत्तर दिया- बाबा, मैं तो माँ का घर बना रहा हूं। उसकी आंखों में चमक थी, हृदय में जगदम्बा के प्रति भक्ति हिलोर ले रही थी। निश्चय ही माँ का मन्दिर बनाना कितना सौभाग्यपूर्ण है। इससे बढ़कर आनन्द भला और क्या हो सकता है। इन तीनों श्रमिकों की बात सुनकर परमहंस देव यह कहते हुए भाव समाधि में डूब गए कि सचमुच जीवन तो वही है, पर दृष्टिकोण भिन्न होने से सब कुछ बदल जाता है। दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे हो जाते हैं, और कांटे फूल हो जाते हैं। आनन्द अनुभव करने का दृष्टिकोण जिसने पा लिया उसके जीवन में आनन्द के सिवा और कुछ नहीं रहता।

************

Hindi News / Astrology and Spirituality / Religion and Spirituality / दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस

ट्रेंडिंग वीडियो