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परोपकार वह है, जो गंगा, यमुना और नर्मदा की तरह निःस्वार्थ भाव से किया जाए : आचार्य श्रीराम शर्मा

परोपकार वह है, जो गंगा, यमुना और नर्मदा की तरह निःस्वार्थ भाव से किया जाए : आचार्य श्रीराम शर्मा

Dec 05, 2019 / 04:54 pm

Shyam

परोपकार वह है, जो गंगा, यमुना और नर्मदा की तरह निःस्वार्थ भाव से किया जाए : आचार्य श्रीराम शर्मा

परोपकार वह है, जो गंगा, यमुना और नर्मदा की तरह निःस्वार्थ भाव से किया जाए : आचार्य श्रीराम शर्मा

नदियों का निःस्वार्थ परोपकार

गंगा गोमुख से निकलती है और यमुना यमुनोत्री से, नर्मदा का अवतरण अमरकंटक के एक छोटे से कुण्ड से होता है। मान सरोवर से ब्रह्मपुत्र निकलती है, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज ऐसे अनेकों प्रवाहों को प्रवाहित कर रहा है, जिसका प्रभाव न केवल भारत को वरन् समूचे विश्व को एक नई दिशा में घसीटता हुआ आने वाले भविष्य में ले चलेगा।

 

दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे और कांटे फूल हो जाते हैं : रामकृष्ण परमहंस

 

जीवन में एक नया प्रकाश

निःसन्देह प्रार्थना में अमोघ शक्ति है। परोपकार आत्म कल्याण और जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही उसका सदुपयोग होना चाहिए। आत्म कल्याण और संसार की भलाई से प्रेरित प्रार्थनायें ही सार्थक हो सकती हैं। जब असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय और मृत्योर्माऽमृंतगमय के श्रद्धापूरित भाव उद्गार अंतःकरण से उठेंगे, तो निश्चय ही जीवन में एक नया प्रकाश प्रस्फुटित होगा।

 

हमें केवल अपने शरीर के लिए ही नहीं, आत्मा के लिए भी जीना चाहिए : संत टॉलस्टाय

 

उज्ज्वल परिस्थितियों का प्रादुर्भाव

यह सुनिश्चित है कि लोगों की आस्थाओं को ,युग के अनुरूप विचार धारा को स्वीकारने हेतु उचित मोड़़ दिया जा सके, तो कोई कारण नहीं कि सुखद भविष्य का, उज्ज्वल परिस्थितियों का प्रादुर्भाव संभव न हो सके? यह प्रवाह बदल कर उलटे को उलटकर सीधा बनाने की तरह का भागीरथी कार्य है, किन्तु असम्भव नहीं, पूर्णतः सम्भव है।

 

अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद

 

परोपकार वह है,वजो निःस्वार्थ भाव से किया जाए

सेवा, त्याग, प्रेम, सहृदयता, कष्ट सहिष्णुता आदि परोपकार का अङ्ग है। जिस तरह नदियां अपने लिये नहीं बहती, वृक्ष अपने फलों का उपभोग स्वतः नहीं करते, बादल अपने लिये नहीं बरसते, उसी तरह सज्जन और विशाल हृदय मनुष्य सदैव परोपकार में लगे रहते हैं। परोपकार वह है,वजो निःस्वार्थ भाव से किया जाय। उसमें कर्तव्य भावना की विशालता अन्तर्हित हो। स्वार्थ की भावना और भविष्य में अपने लिये अनुकूल साधन प्राप्त की दृष्टि से जो सेवा की जाती है, वह परोपकार नहीं प्रवंचना है।

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