यह कहानी एक राजा के कांटों से प्यार की है। जिससें में सैलाना के राजा दिग्विजय सिंह कैक्टस के कांटों से मोहब्बत हो गई थी। वे कैक्टस के एसे दीवाने हुए कि कांटों की एक नई दुनिया ही बसा डाली। विदेशों से कांटों के पौधे मंगवाए, वहां की मिट्टी भी मंगवाई जिससे पौधे जीवित रह सके और तैयार करा दिया करीब 2000 प्रजातियों का नया कैक्टस गार्डन। ये कैक्टस गार्डन पूरे एशिया का सबसे बड़ा कैक्टस गार्डन माना जाता है।
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जर्मनी में मिली प्रेरणा
कांटों की ये दुनिया बसती है, रतलाम शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर सैलाना में, जिसे लोग कैक्टस गार्डन के नाम से जानते है। कांटों से भरे इस बगीचे में करीब 2000 प्रजाती के कैक्टस मौजूद है, जिसके चलते यह एशिया का सबसे बड़ा कैक्टस गार्डन कहलाता है। कैक्टस की यहां जितनी प्रजातियां हैं, उतनी शायद ही कहीं होगी। यहीं कारण है, कि आज भी एशिया में यह अपनी कांटों भरी चमक बिखेर रहा है।
इसका निर्माण सैलाना महाराज दिगविजय सिंह ने कराया था। वह 1958 में जर्मनी की यात्रा पर गए थे और वहां उन्होंने कैक्टस देखें और उसके दीवाने हो गए। उसके बाद उन्होंने सैलाना में इसका बगीचा बनाने की ठानी और विदेशों से कैक्टस के पौधे बुलाकर एक ऐसा बगीचा तैयार कर लिया।
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विदेशों से आए पौधे और मिट्टी
सैलाना के कैक्टस गार्डन में जर्मनी, टेक्सास, मैक्सिको, चिली सहित अन्य कई देशों से आए कैक्टस के पौधे लगे हंै। पौधे यहां जीवित रह सके इसके लिए विदेशों से पौधों के साथ मिट्टी भी मंगवाई गई थी। आम तौर पर लोग कांटों से बचते है, लेकिन यहां आने वाले लोग इनकी खूबसूरती को देख उन्हें छूने का प्रयास करते है। उस जमाने में बने इस बगीचे में फिल्म जीने नहीं दूंगा में धर्मेंद्र का एक गाना भी इस बगीचे में फिल्माया गया था। धर्मेंद्र जब शूटिंग के लिए गार्डन में पहुंचे थे, तो वह भी इसके दीवाने हो गए।
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सेंव, साड़ी और सोने के बीच कांटों की दुनिया
सेंव, साड़ी, और सोने से पहचाने जाने वाले रतलाम की अपनी एक अलग पहचान इस कांटों की दुनिया से भी है। यह एक ऐसी दुनिया है, जिसके दीवानें हजारों लोग है। यदि कोई रतलाम आता है, तो वह कांटों से सजी इस दुनिया को देखे बगैर नहीं जाता है। कैक्टस की यहां जितनी प्रजातियां हैं, उतनी शायद ही कहीं होगी।